SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. १६-१९.] बैमानिकों के भेद और उनका वर्णन है। ढाई द्वीप के बाहर पचास हजार योजन जाने पर ज्योतिष्क मल . की प्रथम पंक्ति मिलती है। इसके बाद एक-एक लाख योजन जाने पर इसका मद्भाव पाया जाता है। स्वयंभूरमण समुद्र के अन्त तक यही न चला गया है। पुष्करवर के पूर्वाध में ज्योतिषी विमानों की जितनी संख्या है उत्तरार्ध में वह उतनी ही पाई जाती है । आगे पुष्करवर समुद्र में इनकी संख्या इससे चौगुनी है और आगे प्रत्येक द्वाप समुद्र में दुनी-दूनी होती गई है। किन्तु इसका यह मतलब नहीं कि ढाई द्वीप में जितने तारे हैं वे सब चर ही हैं । जम्बूद्वीप में ऐसे ३६ तारे है जो सदा स्थिर रहते हैं। आगे के लवण समुद्र आदि दो समुद्रों में व धातकीखण्ड और . पुष्कराधे में इनकी संख्या जुदी-जुदी है। ___वैमानिकों के भेद और उनका वर्णनवैमानिकाः ॥१६॥ कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ।। १७ ॥ उपर्युपरि ।। १८ ॥ सौधर्मेशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठ शुक्रमहाशुक्रशतारसहस्रारेवानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु वेयकेष विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थ सिद्धौ च* ॥ १९ ॥ 'चौथे निकाय के देव वैमानिक हैं। वे कल्पोपपन्न और कल्पातीत ये दो प्रकार के हैं। जो ऊपर-ऊपर रहते हैं। सौधर्म-ऐशान, सानत्कुमार-माहेन्द्र, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लान्तव-कापिष्ठ, शुक्र महाशुक्र, शतार-सहस्रार, आनत-प्राणत, आरण-अच्युत, नौ ग्रैवे. * श्वेताम्बर पाठ 'सर्वार्थसिद्धच' ऐसा है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy