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________________ १७६ तत्त्वार्थसूत्र [४. १२.-१५. इस प्रकार सूर्यों के विमान समतल भूभाग से आठ सौ योजन की ऊँचाई पर हैं। फिर अस्सी योजन ऊपर जाकर चन्द्र के विमान हैं। फिर चार योजन ऊपर जाकर नक्षत्रों के विमान हैं। वहाँ से चार योजन ऊपर जाकर बुध के बिमान हैं। वहाँसे तीन योजन ऊपर जाकर शुक्र के विमान हैं। वहाँ से तीन योजन ऊपर जाकर बृहस्पति के विमान हैं । वहाँ से तीन योजन ऊपर जाकर मङ्गल के विमान हैं और वहाँ से तीन योजन ऊपर जाकर शनैश्चर के विमान हैं । शनैश्चर के विमान सबके अन्त में हैं ॥१२॥ मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत के भीतर पाये जाते हैं। मानुषोत्तर पर्वत के एक ओर से लेकर दूसरी ओर तक कुल विस्तार पैंतालीस लाख योजन है । मनुष्य इसी क्षेत्र में पाये जाते हैं इसलिये यह मनुष्य लोक कहलाता है । इस लोक में ज्योतिष्क सदा भ्रमण किया करते हैं। इनका भ्रमण मेरु के चारों ओर होता है। मेरु के चारों ओर ग्यारह सौ इक्कीस योजन तक ज्योतिष्क मण्डल नहीं है। इसके आगे वह आकाश में सवत्र बिखरा हुआ है। जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्र हैं । एक -सूर्य *जम्बूद्वीप की पूरी प्रदक्षिणा दो दिन रात में करता है। इसका चार क्षेत्र जम्बूद्वीप में १८० योजन और लवण समुद्र में ३३०६६ योजन माना गया है। सूर्य के घूमने की कुल गलियाँ १८४ हैं । इनमें यह क्षेत्र ॐ वर्तमान काल में पाश्चमात्य विद्वानों के मतानुसार पृथिवी घूमती हुई और सूर्य स्थिर माना जाता है। किन्तु यह अन्तिम निर्णय नहीं है। टोल्मी जो ईसा से पूर्व हुआ है उसकी दृष्टि से पृथिवी स्थिर है और सूर्थ घूमता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टाइन के सापेक्षवाद के सिद्धान्त के पहले यह मत 'बिलकुल निराधार माना जाता था। किन्तु अब बहुत से वैज्ञानिकों का मत है कि सूर्य के चारों ओर पृथिवी की गति केवल गणित की सरलता की दृष्टि से . ही मानी जाती है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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