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________________ ४. १२-- १५.] ज्योतिष्कों के भेद और उनका विशेष वर्णन १७५ भेद हैं । जो ये हैं-भीम, महाभीम, विघ्नविनायक, उदक, राक्षस, राक्षस-राक्षम और ब्रह्मराक्षस । भूत सात प्रकार के हैं। यथा--सुरूप, प्रतिरूप, भूतोत्तम, प्रतिभूत, महाभूत, प्रतिछन्न और आकाशभूत । पिशाचों के चौदह भेद हैं। यथा--कूष्माण्ड, रक्षस् , यक्ष, संमोह, तारक, अचौक्ष, काल, महाकाल, चौक्ष, सनालक, देह, महादेह, तूष्णीक और प्रवचन ॥११॥ ज्योतिष्कों के भेद और उनका विशेष वर्णनज्योतिष्काः सूर्याचन्द्रमभौ ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च ॥ १२ ॥ मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलाक ॥ १३ ॥ तत्कृतः कालविभागः ॥ १४ ॥ बहिरवस्थिताः ॥ १५ ॥ सूर्य और चन्द्र तथा ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारक ये पाँच प्रकार के ज्योतिष्क हैं। ये मनुष्य लोक में मेरु की प्रदक्षिणा करनेवाले और निरन्तर गमनशील हैं। इन गमनशील ज्योतिष्कों के द्वारा किया हुआ काल विमाग है। ये मनुष्यलोक के बाहर अवस्थित हैं। सूर्य आदि पाँचों प्रकार के ज्य तिष्क ज्योतिःस्वभाव अर्थात् प्रकाश-- मान होते हैं इसलिये ये ज्योतिष्क कह गये हैं। इस समान भूभाग से सात सौ नब्बे याजन की ऊँचाई से लेकर नौ सौ पाँच प्रकार के ज्यो.. योजन तक अर्थात् एक मौ दस योजन के भीतर तिष्क और उनका यह ज्योतिष्क समुदाय पाया जाता है। तिरछे रूफ निवास स्थान से यह स्वयम्भूरण समुद्र तक फैला हुआ है। इसमें सात सौ नब्बे योजन की ऊंचाई पर सर्व प्रथम तारकाओं के विमान हैं। यहाँ से दस योजन ऊपर जाने पर सूर्यों के विमान हैं।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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