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३.३८-३९.] मनुष्यों और तिर्यञ्चों की स्थिति
१६५७ योजन का आयाम और विस्तारवाला तथा एक योजन गहरा एक पल्या अर्थात् गड़ा तैयार करे। फिर नवजात मेढे के बालों से उसे भर दे। पर इतना ध्यान रखे कि भरते समय ये बाल कैंची से काट काटकर अति छोटे टुकड़ों से भरे। वे टुकड़े इतने छोटे हों जिनके कैंची से दूसरे टुकड़े न हो सके। अनन्तर सौ सौ वर्ष में एक-एक टुकड़ा निकाले। इस प्रकार इस क्रिया के करने में जितना काल लगे वह व्यवहार पल्योपम है। इससे उद्धार पल्योपम असंख्यात करोड़ वर्षों के जितने समय हों उतना गुणा है। और इससे अद्धापल्योपम सौ वर्ष के जितने समय हो उतना गुणा है। प्रथम पल्यापम इस सब व्यवहार का बीज है इसलिये वह व्यवहार पल्योपम कहलाता है। दूसरे पल्योपम से द्वीप समुद्रों की संख्या गिनी जाती है । सब द्वीप और समुद्र पञ्चीस कोड़ाकोड़ी पल्पोपम प्रमाण बतलाये हैं। तीसरे पल्योपम से कमस्थिति और भवस्थिति आदि जानी जाती है। यहाँ इतना और विशेष जानना कि दस कोड़ाकोड़ी पल्योपमों का एक सागरोपम होता है।
स्थिति दो प्रकार की है भवस्थिति और कायस्थिति। एक पर्याय में रहने में जितना काल लगे वह अवस्थिति है। तथा पुनः पुनः उसी
पर्याय में निरन्तर उत्पन्न होना, दूसरी जाति में स्थिति के भेद
मद नहीं जाना इस प्रकार जितना काल प्राप्त हो वह कायस्थिति है। ऊपर मनुष्यों और तिर्यचों की भवस्थिति बतलाई है। आगे उनकी कायस्थिति का विचार करते हैं।
मनुष्य की जघन्य कायस्थिति जघन्य भवस्थिति प्रमाण है, क्योंकि एक बार जघन्य आयु के साथ भव पाकर उसका अन्य पर्याय में जाना
सम्भव है। तथा उत्कृष्ट कायस्थिति पूर्वकोटि पृथक्त्व कावास्यात अधिक तीन पल्यापम है। पृथक्त्व यह रौढिक संज्ञा है। मुख्यतः इसका अर्थ तीन से ऊपर और नौ से नीचे की संख्या लिया