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________________ १६२ तत्त्वार्थसूत्र ३.३५-३६] आर्या म्लेच्छाश्च ॥ ३६॥ मानुषोत्तर पर्वत के पहले तक ही मनुष्य हैं। उनके आर्य और म्लेच्छ ये दो प्रकार हैं। पीछे जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड द्वीप और पुष्करार्धद्वीप इनका उल्लेख कर आये हैं इनके मध्य में लवणोद और कालोद ये दो समुद्र और हैं। यह सब क्षेत्र मनुष्यलोक कहलाता है। मनुष्य इसी क्षेत्र में पाये जाते हैं इसके बाहर नहीं। मानुषोत्तर पर्वत मनुष्य लोक की सीमा पर स्थित है इसीलिये इसका मानुषोत्तर यह सार्थक नाम है। ऋद्धिधारी मुनि आदि का भी इस पर्वत को लाँध कर बाहर जाना सम्भव नहीं है। यह इस क्षेत्र का स्वभाव है। ढाई द्वीप के भीतर ये पैंतीस क्षेत्र और दोनों समुद्रों में स्थित अन्तर्वीपों में उत्पन्न होते हैं परन्तु पाये सर्वत्र जाते हैं मेरु पर्वत पर भी ये पहुंचते हैं। इस प्रकार ढाई द्वीप और उन द्वीपों के मध्य में आनेवाले दो समुद्र यह सब मिलकर मनुष्यलोक कहलाता है। मनुष्यों का निवास इतने स्थल में ही है अन्यत्र नहीं। शंका-क्या ढाई द्वीप के बाहर किसी भी प्रकार से मनुष्य नहीं पाया जा सकता है ? . समाधान-ढाई द्वीप के बाहर मनुष्यों के पाये जाने के निम्न प्रकार है (१) जो मनुष्य मरकर ढाई द्वीप के वाहर उत्पन्न होनेवाला है बह यदि मरण के पहले मारणान्तिक समुद्धात करता है तो ढाई द्वीप के बाहर पाया जाता है। (२) ढाई द्वीप के बाहर निवास करनेवाला अन्य गति का जो जीव मरकर मनुष्यों में उत्पन्न होता है उसके पूर्व पर्याय के छोड़ने के अनन्तर समय में ही मनुष्यायु आदि कर्मों का उदय हो जाता है तब भी
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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