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________________ ३. ३५-३६.] मनुष्यों का निवास स्थान और उनके भेद १६१ भागों के सीता और सीतोदा नदियों के कारण दो-दो भाग हो जाते हैं इस प्रकार कुल चार भाग होते हैं जो चारों भाग नदी और पर्वतों के कारण पाठ-आठ भागों में बटे हुए हैं। जिससे जम्बूद्वीप में कुल बत्तीस विदेह हो जाते हैं। इनमें भरत और ऐरावत के समान आर्यखण्ड व म्लेच्छखण्ड स्थित हैं। पदवीधर महापुरुष व तीर्थकर आर्यखण्डों में ही उत्पन्न होते हैं। जम्बूद्वीप में कुल चौतीस और ढाई द्वीप में एक सौ सत्तर आर्यखण्ड हैं। एक साथ होनेवाले तीर्थंकरों की उत्कृष्ट संख्या एक सौ सत्तर बतलाई है वह इन्हीं क्षेत्रों की अपेक्षा से बतलाई है। विदेहों में जो इस समय सीमंधर आदि वीस तीर्थकर कहे जाते हैं सो वे ढाई द्वीप के बोस महाविदेहों की अपेक्षा से कहे गये जानना चाहिये, क्योंकि पूर्वोक्त विभागानुसार जम्बूद्वीप के चार और ढाई द्वीप के वीस महाविदेह होते हैं। पुष्करवर द्वीप के ठीक मध्य में वलयाकार मानुषोत्तर पर्वत स्थित है जिससे पुष्करवर द्वीप दो भागों में बट गया है। इन दो भागों में .. से भीतर के भाग में इन क्षेत्रादिकों की रचना है पुष्कराध संज्ञा का " बाह्य भाग में नहीं, इसलिये इस सूत्र द्वारा पुष्कराध में कारण धातकीखण्ड के समान क्षेत्रादिक की रचना का निर्देश किया है। मानुषोत्तर पर्वत भीतर की ओर सत्रह सौ इकोस योजन ऊँचा है। जमीन पर इसकी चौड़ाई एक हजार बाईस योजन है, मध्य में सात सौतेईस योजन है और ऊपर चार सौ चौबीस योलन है। इससे इसका आकार बैठे हुए सिंह के समान हो जाता है। बैठा हुआ सिंह आगे को ऊँचा होता है और पीछे को कम से घटता हुआ। यह पर्वत भी भीतर की ओर एक समान ऊँचा है और बाहर की ओर यह क्रम से घटता गया है जिससे इसका रिपटासा बन गया है ॥३३-३४॥ __मनुष्यों का निवास स्थान और भेदप्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः ॥ ३५ ॥
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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