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तत्त्वार्थ सूत्र ३. २७-३४. ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिताः ॥ २८॥ एकद्वित्रिपन्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षकदैवकुरवका:२९ तथोत्तराः ॥ ३०॥ विदेहेषु संख्येयकालाः ॥ ३१ ॥ भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ॥३२॥ द्विर्धातकीखण्डे ॥ ३३ ॥ पुष्करार्धे च ॥३४॥ भरतवर्ष और ऐरावत वर्ष में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के छह समयों द्वारा वृद्धि और ह्रास होता है।
इनके सिवा शेष भूमियाँ अवस्थित हैं।
हैमवत, हरिवर्ष और देवकुरु के प्राणियों की स्थिति क्रम से एक, दो और तीन पल्योपम है।
उत्तर के क्षेत्रों के प्राणी दक्षिण के क्षेत्रों के प्राणियों के समान हैं। विदेहों में संख्यातवर्ष की आयुवाले हैं। भरत क्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप का एक सौ नव्वेवाँ भाग है। धातकीखण्ड द्वीप में पर्वतादिक जम्बूद्वीप से दूने हैं। पुष्कराध में उतने ही हैं।
पदार्थों के परिवर्तन करने में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव बड़े सहायक होते हैं। जैसा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का निमित्त मिलता है मनकी दशा उसी प्रकार की होने लगती है। कमो अधिक प्रमाण में यह असर प्रायः सव जगह देखा जाता है। फिर भी कुछ ऐसे नियम हैं जिनसे किसी क्षेत्र विशेष में जीवन क्रम में बहुत अधिक परिवर्तन होता हुआ दिखाई देता है और कहीं पर उसका यत्किंचित्