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________________ ३. १.-६.] अधोलोक का विशेष वर्मन १४३ मघवी और माधवी ये इनके रौढिक नाम है। ये सातों भूमियाँ धनोदधि, धनवात, तनुवात और आकाश के आधार से स्थित हैं। अर्थात् प्रत्येक पृथिवी घनोदधि के आधार से स्थित है। धनोदधि धनवात के आधार से स्थित है। धनवात तनुवात के आधार से स्थित है और तनुवात आकाश के आधार से स्थित है। किन्तु आकाश किसी के आधार से स्थित नहीं है, वह स्वप्रतिष्ठ है ॥ १॥ रत्नप्रभा के तीन भाग हैं-खरभाग, पङ्कभाग और अब्बहुलभाग । खरभाग सबसे ऊपर है। इसमें रत्नों की बहुतायत है और यह सोलह हजार योजन मोटा है। दूसरा पङ्कभाग है। इसकी मोटाई चौरासी हजार योजन है। तथा तीसरा अब्बहुलभाग है। इसकी मोटाई अस्सी हजार योजन है। __इनमें से रत्नप्रभा के प्रथम और द्वितीय इन दो भागों में नारकनारकियों के रहने के आवास नहीं हैं तीसरे में हैं। इस प्रकार प्रथम भूमि के तीसरे भाग की और शेष छह भूमियों की जितनी जितनी मोदाई बतलाई है उसमें से ऊपर और नीचे एक एक हजार योजन भूमि को छोड़कर बाकी के मध्य भाग में नारकियों के आवास है। इनका आकार विविध प्रकार का है। कोई गोल हैं, कोई त्रिकोण हैं और कोई चौकोन हैं आदि । प्रथम भूमि में तीस नरकावास व लाद, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, पटल चौथी में दस लाख, पाँचवीं में तीन लाख, छठी में पाँच कम एक लाख और सातवीं में सिर्फ पाँच नरकावास हैं। ये सबके सब भूमि के भीतर हैं और पटलों में बटे हुए हैं। प्रथम भूमि में तेरह पटल हैं और आगे की भूमियों में दो दो पटल कम होते गये हैं। सातवीं भूमि में केवल एक पटल है। जिस प्रकार एक स्तर पर दूसरा स्तर जमा देते हैं उसी प्रकार ये पटल हैं। एक पटल दूसरे पटल से सटा हुआ है। इन पटलों में जो नरक बतला आये हैं उनमें नारक
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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