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२.१७.-२१. ] पाँच शरीरों का नाम निर्देश और उनका वर्णन १२५
तैजस और कार्मण शरीर तो अनादि सम्बन्धवाले हैं इसलिये इनके विषय में तो जन्मसिद्धता और नैमित्तिकता का प्रश्न ही नहीं उठता। अब रहे शेष तीन शरीर सो उनमें से औदारिक शरीर तो केवल जन्म से ही होता है जो गर्भ और सम्मूर्छन जन्म से पैदा होता है तथा जिसके स्वामी मनुष्य और तिथंच हैं। वैक्रियिक शरीर जन्म से भी होता है और निमित्त विशेष के मिलने पर भी होता है। इनमें से जो जन्म से होता है वह उपपाद जन्म से पैदा होता है और इसके स्वामी देव और नारकी हैं। वैक्रियिक निमित्त विशेष के मिलने पर भी होता है सो यहां निमित्त विशेष से लब्धि ली गई है। प्रकृत में लब्धि का अर्थ तप से उत्पन्न हुई शक्ति विशेष है जो गर्भज मनुष्यों के ही सम्भव है। इसलिये गर्भज मनुष्य भी नैमित्तिक वैक्रियिक शरीर के स्वामी होते हैं। यद्यपि पहले अनादि सम्बन्धवाले तेजस शरीर का उल्लेख कर आये हैं। पर एक तैजस शरीर तपश्चर्या के निमित्त से उत्पन्न हुई लब्धि के निमित्त से भी होता है जिसके अधिकारी गर्भज मनुष्य ही हैं। आहारक शरीर तो नैमित्तिक ही है, क्योंकि यह आहारकऋद्धि के होने पर ही होता है।
शंका-विक्रिया तो गर्भज तिर्यंच व वायुकायिक जीवों के भी देखी जाती है ?
समाधान-देखी अवश्य जाती है पर वह विक्रिया औदारिक शरीर सम्बन्धी ही है इसलिये उसका अलग से निर्देश नहीं किया।
शंका-आहारक ऋद्धि का स्वामी कौन है ? समाधान-मुनि।
शंका-तो क्या सभी गुणस्थानों में आहारक शरीर उत्पन्न होता है।
समाधान नहीं। शंका-तो फिर किस गुणस्थान में आहारक शरीर उत्पन्न होता है ?