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________________ तत्त्वार्थ सूत्र [ २.३६.-४९. समाधान - पांच शरीरों में तैजस के सिवा शेष चार शरीर योग अर्थात् क्रिया के साधन हैं। उसमें भी किसके रहने पर इन्द्रियां विषयों को ग्रहण करती हैं, और किसके न रहने पर इन्द्रियां विषयों को ग्रहण नहीं करतीं अर्थात् आभ्यन्तर योग क्रिया के सिवा बाह्य प्रवृत्ति निवृत्ति में कौन शरीर सहायक हैं और कौन नहीं यह यहां प्रश्न है । इसी प्रश्न का उत्तर प्रस्तुत सूत्र में दिया गया है । यतः तैजस शरीर किसी भी प्रकार की क्रिया का साधन नहीं, अतः वह निरुपभोग है कि सोपभोग यह प्रश्न ही नहीं उठता । क्रिया का साधन होते हुए कौन शरीर freeभोग है और कौन शरीर सोपभोग इसका निर्णय करना यहां मुख्य है । और इसी दृष्टि से अन्तिम शरीर को निरुपभोग बतलाया है । शंका- जो लब्धिनिमित्तक तैजस शरीर होता है. वह तो क्रिया करते हुए पाया जाता है । यदि क्रोधित साधु के यह पैदा होता है तो बाहर निकल कर दाल को भस्मसात् कर देता है और यदि अनुग्रह के निमित्त से किसी साधु के यह पैदा होता है तो मारो रोग आदि के शान्त करने का निमित्त बन जाता है, इसलिये 'तैजस शरीर के निमित्त से उपभोग नहीं होता है' यह कहना नहीं बनता है ? समाधान- सच बात तो यह है कि तेजस शरीर को ऐसा मान कर भी उसे योग का निमित्त नहीं माना है, इसलिये उपभोग प्रकरण मैं उसका विचार करना ही व्यर्थ है । दूसरे इस प्रकार यद्यपि तैजस शरीर में क्रिया मान भी ली जाय तो भी उससे विषयों का ग्रहण नहीं होता, क्योंकि उसमें द्रव्येन्द्रियों की रचना नहीं होती, इसलिये वह खोपभोग तो माना ही नहीं जा सकता ॥ ४४ ॥ यह देखना है कि कितने शरीर जन्म से होते हैं और कितने निमित्त विशेष के मिलने पर के पांच सूत्रों में इसी बात का गया हैं । १२४ जन्मसिद्धता और नैमित्तिकता होते हैं। आगे विचार किया
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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