SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थसूत्र [२.३६.-४९. पाँच शरीरों का नाम निर्देश और उनके सम्बन्ध में विशेष वर्णन औदारिक वैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ॥३६॥ परम्परं सूक्ष्मम्। ॥३७॥ प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं पाक तैजसात् ॥३८॥ अनन्तगुणे परेः॥३९॥ अप्रतीपाते ॥४०॥ अनादिसम्बन्धे च ॥४१॥ सर्वस्य ॥४२॥ तदादीनि भाज्यानि युगपदेक स्मिन्ना चतुर्व्यः ॥४३॥ निरुपभोगमन्त्यम् ॥४४॥ गर्भसम्मूच्छनजमाद्यम् ॥४॥ औपपादिकं वैक्रियिकम् ॥४६॥ लब्धिप्रत्ययं च ॥४७॥ तैजसमपि ॥४८॥ शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं प्रमत्तसंयतस्यैव ()॥४९॥ औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण ये पाँच प्रकार के शरीर हैं। * श्वेताम्बर पाठ 'वैक्रियिक' के स्थान में 'वैक्रिय' है। + श्वेताम्बर तत्त्वार्थभाष्यमान्य पाठ "तेषां परम्परं सूक्ष्मम्' है । + श्वेताम्यर पाठ 'वैक्रियमौपपातिकम्' ऐसा है। श्वेताम्बर परम्परा में यह सूत्र नहीं है। () श्वेताम्बर पाठ 'प्रमत्तसंयतस्यैव' के स्थान में 'चतुर्दशपूर्वधरस्यैव' है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy