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________________ २. ३१. - ३५. ] जन्म और योनि के भेद तथा उनके स्वामी ११५ और तुरिन्द्रिय इनकी दो दो लाख, देव, नारकी और तिर्यंच इनकी चार चार लाख और मनुष्य को चौदह लाख योनियाँ होती हैं । यहाँ इन्हीं के संक्षेप में विभाग करके नौ भेद बतलाये हैं । शंका- योनि और जन्म में क्या अन्तर है ? समाधान - योनि आधार है और जन्म आधेय है । अर्थात् नया भव धारण करके जीव जहाँ उत्पन्न होता है वह योनि है और वहाँ शरीर के योग्य पुद्गलों का ग्रहण करना जन्म है ॥ ३२ ॥ उनमें से कौन जन्म पहले तीन प्रकार के जन्म बतला आये हैं । किन जीवों के होता है यह बतलाते हैं जरायुज, अण्डज और पोत प्राणियों के गर्भ जन्म होता है । देव और नारकियों के उपपाद जन्म होता है तथा शेष जीवों के अर्थात् पांचों स्थावर काय, तीनों विकलेन्द्रिय तथा जन्म के स्वामी सम्मूर्च्छन मनुष्य और सम्मूर्च्छन पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के सम्मूर्च्छन जन्म होता है । जो जरायु से पैदा होते हैं वे जरायुज ' यथा मनुष्य, हाथी, घोड़ा, बैल, बकरी आदि । जरायु एक प्रकार का जाल जैसा आवरण है जिसमें रक्त मांस भरा रहता है और उससे TET लिपटा रहता है । जो अण्डे से पैदा होते हैं वे अण्डज हैं। यथा-पक्षी आदि । अण्ड रक्त और वीर्य का बना हुआ नख के समान कठिन गोल होता है । जो किसी प्रकार के आवरण से वेष्ठित न होकर पैदा होते ही उछलने कूदने लगते हैं वे पोत हैं । यथा नेवला आदि । ये पोत जीव न तो जरायु से लिपटे हुए पैदा होते हैं और न अण्डे से किन्तु खुले अंग पैदा होते हैं । देव और नारकियों की उत्पत्ति के लिये नियत स्थान होता है जिसे उपपाद स्थान कहते हैं । देवों की उत्पत्ति के लिये अलग से उपपाद शय्या बनी है । नारकियों की उत्पत्ति के लिये भी विलों के ऊपर के भाग में उपपाद स्थान बने हुए हैं। तथा सम्मूर्च्छन जन्म के स्थान अनियत हैं ।। ३३-३५ ।। /
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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