SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २.२२.-२४.] इन्द्रियों के स्वामी १०३ कृमि, पिपीलिका, भ्रमर और मनुष्य बगैरह के एक एक इन्द्रिय अधिक होती है। मनवाले जीव संज्ञी होते हैं। पहले संसारी जीवों के स्थावर व त्रस ये दो भेद बतला आये हैं। उनमें से किसके कितनी इन्द्रियाँ होती हैं यहाँ यह बतलाया है। पहले जो स्थावर के पृथिवीकायिक, जलकायिक अग्निकायिक, वायुकायिक और वनम्पतिकायिक ये पाँच भेद बतलाये हैं सो इन पाँचों के तो एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है क्योंकि ये पाँचों प्रकार के जीव केवल स्पर्श करके ही ज्ञान प्राप्त करते हैं। इसी से यहाँ वनस्पति तक के जीवों के एक स्पर्शन इन्द्रिय कही है। शंका-पृथिवीकायिक आदि पाँच स्थावर काय जीवों के एक स्पर्शन इन्द्रिय ही क्यों होती है ? __समाधान -पृथिवीकायिक आदि जीवों के एकेन्द्रिय जानि नाम कर्म का ही उदय होता है जिससे उनके स्पर्शन इन्द्रियावरण कर्म का ही क्षयोपशम होता है शेष इन्द्रियावरण कर्म का नहीं। इसीसे उनके एक स्पर्शन इन्द्रिय होती है। शंका पृथिवी आदि में जीव है यह कैसे जाना जाता है ? ममाधान -पृथिवी में वृद्धि होती है. जल, अग्नि और वायु में क्रिया होतं' है, अग्निको झक देने पर बुझ जाती है और वनस्पति में वृद्धि, संकोच तथा विकोच देखा जाता हैं। ये सब बातें जड़ में सम्भव नहीं, इससे ज्ञात होता है कि पृथिवी आदि में जीव है ।। २२ ॥ बसों के चार भेद बतलाये हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । यहाँ अनुक्रम से इन्हीं जीवों के प्रकार बतलाने के लिये कृमि आदि शब्द निबद्ध किये हैं। कृमि आदि जाति के जीवों के दो इन्द्रियाँ होती हैं एक स्पर्शन और दूसरी रसन । पिपीलिका अर्थात् चींटी आदि जाति के जीवों के तीन इन्द्रियाँ होती हैं-पूर्वोक्त दो और
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy