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सर्वार्थ
सिद्धि
निका
म.
। वांछापूरण होय जाय हैं । बहुरि कहेगा, जो जहां वस्तूकै अर्थक्रिया ठहरै, तहां अविसंवाद है, तौ गीतादि शब्दका 111
ज्ञान तथा चित्रामादिकका ज्ञानकै प्रमाणता ठहरैगी । तहां स्वरूपमात्रका ज्ञान है, अर्थक्रिया नहीं है । ऐसें बौद्धकरि मान्या अविसंवाद लक्षण बाधासहित है ॥ बहुरि और भी मतके एकांतते प्रमाणके लक्षण तथा विशेपण जुदे जुदे करै हैं ते युक्तिशास्त्रतें बाधासहित हैं । ते श्लोकवार्तिकादिकतें जानने। जैनमतमें तो “ स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम् "
वचऐसा लक्षण परीक्षामुखवि कह्या है । और शास्त्रमें पाठांतर कह्या है । सोही निर्बाध है । बहुरि प्रमाणका प्रमाणपणां टीका कैसे होय ? तहां सर्वथा एकांतवादी केई तौ तिस प्रमाणहीतें प्रमाणपणांका निश्चय होय है ऐसें कहै हैं । केई अन्यतै
प्रमाणता होहै ऐसैं कहै हैं । सो यहु बाधासहित है । स्याद्वादकार अभ्यासदशामैं तो प्रमाणका निश्चय प्रमाणहीत होय है । बहुरि विना अभ्यासदशामै परतें निश्चय होय है ऐसा निर्बाध सिद्ध किया है । कोई कहै हैं “ प्रमाणपणा प्रवृत्तिसामर्थ्यते निश्चय होय है ” सो प्रमाणकरि प्रतीतिमैं आया जो पदार्थ ताके निकटि होते वाके फलकी प्राप्ति होय तब जानिये कि यह प्रमाण है । यह प्रवृत्तिसामर्थ्यते प्रमाणता आई, परंतु इहां अनवस्था दूषण होय है । जाते प्रवृत्तिसामर्थ्यका समानजातीय ज्ञानकी प्रमाणता अन्यप्रवृत्तिसामर्थ्यतें होयगी तब अनवस्था आवहीगी । बहुरि प्रवृत्ति है सो तौ जे परीक्षावान् हैं तिनिकै तौ प्रमाणका निश्चय होय तब होय है । बहुरि. लौकिकजनकै विना निश्चय भी प्रवृत्ति हो है । बहुरि परीक्षावान् भी कोई पदार्थनिविर्षे अपरीक्षावान् है । जाते सर्वपदार्थनिकी परीक्षा तौ सर्वज्ञकै है अन्य तौ कोई प्रकार परीक्षक है कोई प्रकार अपरीक्षक है । सो परीक्षक है सोहू अपरीक्षक है, ऐसें जाननां ॥
बहुरि इहां कोई पूछ, अन्यवादीनिके प्रमाणनिकी संख्याका निराकरण कैसे है ? ताकू कहिये है, जे अन्यवादी चार्वाक एक प्रत्यक्षप्रमाणही मानै है ताकै परके चित्तकी वृत्तिकी सिद्धि अनुमानविना होयगी नांही । ताकै आर्थि अनुमान मानगा तब एकही प्रमाण माननां कैसै सिद्ध होयगा ? बहुरि बौद्धमती प्रत्यक्ष अनुमान ए दोय प्रमाण मान है । ताकै साध्यसाधनके व्याप्तिसिद्धि करनेकू स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क ए तीन प्रमाण चाहियेगा । तब दोयकी संख्या न रहेगी। व्याप्तिका ज्ञान प्रत्यक्ष अनुमानते नाही होयगा । स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क ए प्रत्यक्ष अनुमानमैं गर्भित न होयगा । बहरि श्रुत कहिये आगमप्रमाण है । सो आप्तके शब्दके श्रवणते होय है । सो यह भी प्रत्यक्ष अनुमानमैं गर्भित न होयगा तब तीन प्रमाण होयगा । बहुरि शब्द तथा उपमानसहित च्यारि प्रमाण मान है तथा अर्थापत्तिसहित पांच तथा अभावसहित छह मान है। तिनकै स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क ये तिनिमें गर्भित न होयगे तब संख्या बधि जायगी। तातै तिनिकी संख्याका नियम नही ठहरे है। तातें प्रत्यक्ष परोक्ष ए दोय संख्यामैं सर्व भेद गर्भित होय है। तातें यह नियम निर्बाध है ॥