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________________ वचनिका पान हा लेश्यावि मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल. है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है उत्कृष्ट इकतीस सागर कछु । अधिक है । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि सयोगकेवलीपर्यतनिका अर लेश्यारहितका गुणस्थानवत् काल है । विशेष यहु जो, संयतासंयतका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य एकसमय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है ॥ । भव्यके अनुवादकरि भव्यविर्षे मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा दोय भंग है । सर्वार्थ सिदि Rअनादि सांत सादि सांत । तहां सादिसांत जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट अर्धपुद्गलपरिवर्तन कछु घाटि है। सासादन टीका आदि केवलीपर्यंतनिका गुणस्थानवत् काल है । अभव्यनिका अनादि अनंत काल है ॥ २ सम्यक्त्वके अनुवादकरि क्षायिकसम्यग्दृष्टीनिका असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिका गुणस्थानवत् काल है । क्षायोपशमिक सम्यदृष्टीनिका चायौं गुणस्थाननिका गुणस्थानवत् काल है । औपशमिक सम्यक्त्ववि असंयत| सम्यग्दृष्टि संयतासंयत इनि दोऊनिका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट पल्योपमकै असंख्यातवै भाग है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य भी उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त है । प्रमत्त अप्रमत्त संयतका अर च्यारि उपशमश्रेणीवालेका | नानाजीवकी अपेक्षा एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ एक समय है उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है । सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यमिथ्या दृष्टिनिका गुणस्थानवत् काल है ॥ १ संज्ञीके अनुवादकरि मिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिबादरपर्यंतनिका पुरुपवेदवत् काल है । अवशेपका गुणस्थानवत् काल । है । असंज्ञीनिका मिथ्याइष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ क्षुद्रभवमात्र है। सासके । अठारहवै भाग अर उत्कृष्ट अनंतकाल है। सो असंख्यातपुद्गलपरिवर्तन है। दोऊ नामकार रहितनिका गुणस्थानवत् काल है। आहारकका अनुवादकार आहारकवि मिथ्याष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट अंगुलकै असंख्यातवा भाग है । सो असंख्यातासंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी परिमाण है। अंगुलिकै प्रदेश अर इनिके समय समान हैं । अवशेपनिका गुणस्थानवत् काल है। अनाहारकवि मिथ्याष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ एकसमय है । उत्कृट तीन समय है। सासादनसम्यग्दृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य एकसमय है। उत्कृष्ट आवलीकै असंख्यातवां भाग है। एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ एकसमय है उत्कृष्ट दोय समय है । सयोगकेवलीका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ तीन समय है । उत्कृष्ट | असंख्यातसमय है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य अर उत्कृष्ट तीन समय है। अयोगकेवलीका गुणस्थानवत् काल है । ऐसे कालका वर्णन किया है ॥
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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