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वच
15 कार करेगा ? बहुरि कोई वादी कहै, काहुकै काहूका संबंध नाही, तातें कोईका कोई स्वामी नाही, तातें स्वामित्व कहना अयुक्त है।
है। ताळू काहिये-जो, संबंध न होय तो सर्वव्यवहारका लोप होय । तातें कथंचित् संबंध प्रमाणसिद्ध है। तहां द्रव्य क्षेत्र काल भावकी प्रत्यासत्ति कहिये निकटताका विशेप है, सो संबंध है। तहां कोई पर्यायके कोई पर्यायकरि समवायतें।
निकटता है। ताळू द्रव्यप्रत्यासत्ति कहिये । जैसे स्मरणके अर अनुभवकै एक आत्माविपैं समवाय है। ऐसें न होय तौ सर्वार्थ जाका अनुभव पूर्व होय ताहीका स्मरण कैसे होय ? बहुरि वगुलाकी पंक्तीकै अर जलकै क्षेत्रप्रत्यासत्ति है । वहुरि सहचर
निका टीका जे सम्यग्दर्शन ज्ञानसामान्य तथा शरीरविक् जीव अर स्पर्शविशेष तथा पहली पीछे उदय होय ऐसे भरणी कृत्तिका
पान नक्षत्र तथा कृत्तिका रोहिणी नक्षत्र इनिकै कालप्रत्यासत्ति है । तथा गऊ गवयका एकरूप तथा केवलीसिद्धके केवलज्ञान । ३१ एकस्वरूपपणां ऐसे भावप्रत्यासत्ति है सो यहु प्रत्यासत्ति है, सो ही संबंध है। यामें बाधा नांही । तातें जो संबंध है। सोही स्वामीपणांकी सिद्धि करै है । बहुरि यहु संबंध है सो ही कार्यकारणभावकी सिद्धि करै है । ऐसें न होय तौ। मोक्षका उपायादिक सर्वव्यवहारका लोप होय । तातें साधन भी प्रमाणसिद्ध है।
बहुरि आधार-आधेयभाव द्रव्यगुणादिकका प्रसिद्ध ही है । बहुरि स्थिति है सो भी प्रमाणसिद्ध है । सर्वथा क्षणस्थायीही तत्त्वकू माने सर्वव्यवहारका लोप होय । ऐसेंही विधान प्रमाणसिद्ध है। जो एकप्रकारही वस्तु मानिये तो प्रत्यक्ष अनेक वस्तु है ते कैसे लोप करिये ? अर प्रत्यक्षकू असत्य मानिये तब शून्यताका प्रसंग आवै । तातै निर्देश आदिकरि जीव आदि पदार्थनिका अधिगम करना ॥ इहां उदाहरण- निश्चय व्यवहार तौ नय, अरु दोऊ युगपत् प्रमाण इनिकरि करणां, तहां निश्चयनय तौ इहां एवंभूतकू कह्या है । बहुरि व्यवहार अशुद्ध द्रव्यार्थिककू कह्या है । तहां निश्चयनयतें तौ अनादिपारिणामिक जो चैतन्यरूप जीवतत्त्व, ताकरि परिणमता होय, तावू जीव कहिये । बहुरि व्यव - हारनयकरि औपशमिक आदि च्यारि भावस्वरूप जीवकं कहै हैं । बहार निश्चयतें तो अपने चैतन्य परिणामका स्वामी है ॥ व्यवहारतें च्यायों भावनिका स्वामी है । बहार निश्चयतें तो जीवत्वपरिणामका साधन है । व्यवहारतें च्यायोंही भावनिका साधन है । बहुरि निश्चयतें अपने प्रदेशनिकै आधार है । व्यवहारतें शरीरकै आधार है । बहुरि निश्चयतें जीवन समयस्थिति है । व्यवहारतें दोय समय आदि स्थिति है तथा अनादि सांत स्थिति है । बहुरि निश्चयतें अनंत
विधान है । व्यवहारतें नारक आदि संख्यात असंख्यात अनंत विधान है । बहुरि प्रमाणते दोऊ नयका समुदायरूप Mol स्वभाव है । इत्यादि जीवादि पदार्थनिविर्षे आगमतें अविरोध निर्देशादिका उदाहरण जाननां ॥