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बाह्य घटके अभाव होते भी घटका व्यवहार है । सो घट उपयोगाकारकरि घट है। बाह्याकारकार अघट है । जो उपयोगाकार घटस्वरूपकार भी अघट होय तौ वक्ता श्रोताके हेतुफलभूत जो उपयोगाकार घटके अभाव तिस आधीन व्यवहारका अभाव होय । बहुरि जो उपयोगते दूरिवर्ती जो बाह्य घट भी घट होय तौ पटादिककै भी घटका प्रसंग
होय । ऐसे ये दोय भंग भये ॥ ९ ॥ अथवा चैतन्यशक्तिका दोय आकार हैं। एक ज्ञानाकार है एक ज्ञेयाकार है । सर्वार्थ सिद्धि
तहां ज्ञेयतें जुड्या नांही ऐसा आरसाका विनां प्रतिबिंब आकारवत् तौ ज्ञानाकार है । बहुरि ज्ञेयतें जुड्या प्रतिबिंवसहित १ निका आरसाका आकारवत् ज्ञेयाकार है । तहां घट ज्ञेयाकाररूप ज्ञान तो घटका स्वात्मा है । घटका व्यवहार याहीतें चले है। पान बहुरि विना घटाकार ज्ञान है सो परात्मा है । जाते सर्वज्ञेयतें साधारण है । सो घट ज्ञेयाकारकरि तौ घट है । विना घटाकार ज्ञानकरि अघट है। जो ज्ञेयाकारकार भी घट न होय तो तिसके आश्रय जो करणेयोग्य कार्य है ताका निरास होय । बहुरि ज्ञानाकारकरि भी घट होय तौ पटादिकका आकार भी ज्ञानका आकार है सोभी घट ठहरै । । ऐसै ये दोय भंग हैं ॥ १० ॥
ऐसही इनके पांच पांच भंग आर कहिये तब सात सात भंग होय, सो भी दिखाईये हैं। एक घट तथा अघट । दोय कहे ते परस्पर भिन्न नांही हैं। जो जुदे होय तो एक आधारपणांकार दोऊके नामकी तथा दोऊके ज्ञानकी एक घट वस्तुवि वृत्ति न होय, घटपटवत् । तातै परस्पर आविनाभाव होते दोऊमैं एकका अभाव होते दोऊका अभाव होय । तब इसके आश्रय जो व्यवहार ताका लोप होय । तातें यहु घट है सो घट अघट दोऊ स्वरूप है। सो अनुक्रमकरि वचनगोचर है ॥ ३ ॥ बहुरि जो घट अघट दोऊ स्वरूप वस्तुकू घटही कहिये तो अघटका ग्रहण न होय। अघटही । कहिये तौ घटका ग्रहण न होय । एकही शब्दकरि एककाल दोऊ कहै न जाय तातै अवक्तव्य है ॥ ४॥ बहुरि घटस्वरूपकी मुख्यताकरि कह्या जो वक्तव्य तथा युगपत् न कह्या जाय ताकी मुख्यताकरि घट अवक्तक कह्या प्रकारकरि अघट अवक्तव्य है ॥ ६॥ बहुरि तैसै क्रमकार दोऊ कहे जाय युगपत् कहे न जाय ताकार घट अघट अवक्तव्य है ॥ ७ ॥ ऐसें यहु सप्तभंगी सम्यग्दर्शनादिक तथा जीवादिक पदार्थनिविर्षे द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयका मुख्यगौणभेदकार लगाइये तब अनंत वस्तु तथा अनंत धर्मके परस्पर विधिनिषेधते अनंत सप्तभंगी होय हैं । इनिहीका सर्वथा एकांत अभिप्राय होय तब मिथ्यावाद है॥
___बहुरि वचनरूप प्रमाणसप्तभंगी तथा नयसप्तभंगी होय है ॥ इहां प्रमाणविषय तौ अनंतधर्मात्मक वस्तु है। तहां lol एकही वस्तुका वचनकै सर्वधर्मनिकी अभेदवृत्तिकार तथा अन्यवस्तुके अभेदके उपचारकरि प्रमाणसप्तभंगी होय है। बहुरि ।।.