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है । बहुरि अन्यस्वरूपकरि अघट है । जो कपालादि कुशूलांत स्वरूपकार भी घट होय तौ घटअवस्थाविपै भी तिनिकी १ प्राप्ति होय । उपजायवा निमित्त तथा विनाशकै निमित्त पुरुपका उद्यम निष्फल होय । तथा अंतरालवी पर्याय घटस्व
रूपकार भी घट न होय तो घटकरि करनेयोग्य फल न होय । ऐसै ये दोय भंग भये ॥ ४ ॥ अथवा क्षण क्षण
प्रति व्यके परिणामकै उपचय अपचय भेदते अर्थातरपना होय है। यातै ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षात वर्तमानस्वभावकार सर्वार्थ
वचसिद्धि
घट है । अतीत अनागत स्वभावकरि अघट है । ऐसें न होय तौ वर्तमानकी ज्यों अतीत अनागत स्वभावकार भी निका घट होय तब एकसमयमात्र सर्वस्वभाव होय । बहुरि अतीत अनागतकी ज्यों वर्तमान स्वभाव भी होय तौ वर्तमानघट- पान स्वभावका अभाव होते घटका आश्रयरूप व्यवहारका अभाव होय । जैसे विनस्या तथा नांही उपज्यां घटकै घटका व्यवहारका अभाव है तैसे यहभी ठहरै ऐसे दोय भंग यह भये ॥ ५॥ अथवा तिस वर्तमान घटवि4 रूपादिकका समुदाय परस्पर उपकार करनेवाला है । ता विपैं पृथुतुनोदरादि आकार है सो घटका स्वात्मा है। अन्य सर्व परात्मा है । तिस आकार तौ घट है । अन्य आकारकरि अवट है। घटका व्यवहार तिसही आकारतें है । तिस विना अभाव है । तो पृथुबुन्नोदराद्याकारकरि भी घट न होय तो घट काहेका ? । बहार जो इतर आकारकरि घट होय तो आकारशून्यविभी घटव्यवहारकी प्राप्ति आवै । ऐसै ये दोय भंग हैं ॥ ६ ॥ अथवा रूपादिकका संनिवेप जो रचनाविशेप आकार तहां नेत्रकरि घट ग्रहण होय है। ता व्यवहारविचं रूपको प्रधानकार घट ग्रहण कीजिये तहां रूप घटका स्वात्मा । है। बहुरि यामैं रसादिक हैं ते परात्मा हैं । सो घटरूपकार तौ घट है रसादिककार अघट है । जाते ते रसादिक न्यारे न्यारे इंद्रियनिकरि ग्राह्य हैं । जो नेत्रकार घट ग्रहण कीजिये है तैसे रसादिक भी ग्रहण करै तो सर्वकै रूपपणांका प्रसंग आवै तौ अन्य इंद्रियनिकी कल्पना निरर्थक होय । बहुरि रसादिककीज्यों रूपभी घट ऐसा नेत्र नांही ग्रहण करै तौ नेत्रगोचरता या घटमैं न होय । ऐसै ये दोय भंग भये ॥ ७ ॥ अथवा शब्दके भेदते अर्थका भेद अवश्य है । इस न्यायकरि घट कुट शब्दनिकै अर्थभेद है । तातै घटनेते तो घट नाम है। बहुरि कुटिलताते कुट नाम है । तातें तिस क्रियारूप परिणतिके समयही तिस शब्दकी प्रवृत्ति हो है। इस न्यायतें घटनक्रियाविर्षे कर्तापणां है सो ही घटका स्वात्मा है । कुटिलतादिक परात्मा है । तहां घटक्रियापरिणतिक्षणहीमें घट है। अन्यक्रियामैं अघट है। जो घटनक्रियापरिणति मुख्यकार भी घट न होय तो घटव्यवहारकी निवृत्ति होय बहुरि जो अन्यक्रिया अपेक्षा भी घट होय तौ तिस
क्रियाकरि रहित जे पटादिक तिनिविपभी घटशब्दकी वृत्ति होय । ऐसे ये दोय भंग भये ॥ ८ ॥ अथवा घट शब्द 12 उच्चारते उपज्या जो घटकै आकार उपयोग ज्ञान सो तौ घटका स्वात्मा है । अरु बाह्य घटाकार है सो परात्मा है ।।