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|निका
टीका
अ.९
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आगें विनयके भेद कहनेकू सूत्र कहै हैं
॥ ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः ॥ २३ ॥ याका अर्थ-- ज्ञानका विनय, दर्शनका विनय, चारित्रका विनय, उपचारका विनय ऐसे विनयतपके च्यारि भेद हैं। 81. सर्वार्थसिदि 10 इहां विनयका अधिकार है । तातें विनयशब्दका संबंध करना । यात ज्ञानविनय दर्शनविनय चारित्रविनय उपचारविनय ।
ऐसे संबंध भया । तहां बहुमानसहित मोक्षके अर्थि ज्ञानका ग्रहण अभ्यास स्मरण इत्यादि करणा, सो ज्ञानविनय है । / पान १। बहुरि शंकादिदोषरहित तत्वार्थनिका श्रद्धान करना, सो दर्शनविनय है। बहुरि ज्ञानदर्शनसहित होयकार चारित्रवि
समाधानरूप चित्तईं कारण, सो चारित्रविनय है। बहुरि आचार्यआदि प्रत्यक्ष विद्यमान होय तिनकौं देखिकरि उठना तिनके सन्मुख जाना अंजली जोडना इत्यादि उपचारविनय तथा ते परोक्ष होय तो मन बचन कायकार हाथ जोड नमस्कार करना, गुणका स्तवन करना, स्मरण करना इत्यादि भी उपचारविनय हैं । याका प्रयोजन, जो, विनयतें ज्ञानका लाभ होय है, आचारकी शुद्धता होय है, भली आराधना होय इत्यादिकके आर्थि विनयकी भावना है। ____ आगै वयावृत्त्यतपके भेदके जानने सूत्र कहै हैं
॥ आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्षग्लानगणकुलसङ्घसाधुमनोज्ञानाम् ॥ २४ ॥ ___ याका अर्थ- आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु, मनोज्ञ इन दशनिका वैयाबृत्य । करणा, ऐसें याके दश भेद हैं । इहां विशेपके भेदतें भेद जानने । तातें आचार्यवैयावृत्य इत्यादि कहना । तहां जिनते है व्रतआचरण कीजिये, ते आचार्य हैं । बहुरि जिनतें मोक्षके आर्थि प्राप्त होय शास्त्र पढिये ते उपाध्याय हैं । बहुरि महान् उपवास आदि तप करते होय, ते तपस्वी है । बहुरि जे शास्त्र पढनेआदि शिक्षाके अधिकारी होय, ते शैक्ष हैं। बहुरि | रोगआदिकरि क्षीण होय, ते ग्लान हैं । बहुरि जे स्थविर कहिये बड़े मुनिनिकी परिपाटिके होय, ते गण कहिये । बहुरि
दक्षिा देनेवाले आचार्यके शिष्य होय; तिनकू कुल कहिये । बहुरि च्यारिप्रकार मुनिनिका समूहकू संघ कहिये । बहुरि घणा कालका दीक्षक होय, सो साधु कहिये । बहुरि जो लोकमान्य होय सो मनोज्ञ कहिये । इनके रोग परिषह मिथ्या| त्वादिका संबंध आवै तव अपनी कायचेष्टाकार तथा अन्य द्रव्य कार तिनका प्रतिकार इलाज करै, सो वैयावृत्य है ।। याका फल, जो, वैयावृत्यतें समाधिका तो धारण होय है, निर्विचिकित्साभाव होय है, प्रवचनका वात्सल्य होय है