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सर्वार्थ
सिद्धि
टी का
अ. ९
॥सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसाम्पराययथाख्यातमिति चारित्रम् ॥ १८ ॥
याका अर्थ — सामायिक छेदोपस्थापना परिहारविशुद्धि सूक्ष्मसांपराय यथाख्यात ऐसे पांच भेदरूप चारित्र है । इहां प्रश्न, जो दशप्रकार धर्मविषै संयम कह्या ही है, सोही चारित्र है, यह फेरि कहना अनर्थक नाहीं है । धर्मके विषै अंतर्भूत २ है, तो अंतविर्षे चारित्रका ग्रहण किया है । जातैं यह मोक्षकी प्राप्तिका साक्षात् कारण है । चौदहवां गुणस्थानके अंत चारित्रकी पूर्णता भये लगताही मोक्ष होय है । तार्ते साक्षात्कारण है ऐसा जनावनेकूं न्यारा कया है । सो सामायिकका स्वरूप तौ पहले श्रावकके सप्तशील कहे तहां कह्या ही था । सो दोयप्रकार है, एक तौ नियतकाल दूजा अनियतकाल । तां काली मर्यादा करि तामें स्वाध्याय आदि कीजिये सो तौ नियतकाल है । बहुरि ईर्यापथआदिविषै अनियतकाल है । बहुरि प्रमादके वशर्तें उपज्या जो दोष ताकार संयमका प्रबंधका लोप भया होय ताका प्रायश्चित्त आदि प्रतिक्रियाकरि स्थापन करना सो छेदोपस्थापना है । अथवा सामायिकविर्षे अहिंसादिक तथा संमित्यादिकका भेद करना' सो छेदोपस्थापना कहिये । बहुरि प्राणिपीडाका जहां परिहार ताकरि विशेषरूप जो विशुद्धता जामें होय सो परिहारविशुद्धि कहिये ॥
अथाख्यात
बहुरि जहां अतिसूक्ष्म कषाय होय सो सूक्ष्मसांपरायचारित्र है । यह दशमा गुणस्थान सूक्ष्मलोभसहित होय है बहुरि जहां मोहनीयकर्मका सम्पूर्ण उपशम होय, तथा क्षय होय जाय सत्तामेंसूं द्रव्यका कर्म उठि जाय, तहां आत्माका स्वभावकी वीतराग अवस्था होय, सो यथाख्यातचारित्र है । अथवा पहले सामायिक आदि चारित्रके आचरण करनेहारेनें याका व्याख्यान तौ किया अर मोहके क्षयतें तथा उपशमतें पाया नाहीं, तातें अब कह्या, तातें याका नाम भी कहिये । जातैं अथशब्दका अर्थ अनंतर पदार्थ होय सो है, यहू समस्त मोहके क्षय तथा उपशमके अनंतर होय हैं, तातैं अथाख्यात नाम सार्थक है । बहुरि आत्माका स्वभाव जैसा अवस्थित है तैसाही यामें कया है, तातें याका नाम यथाख्यात' भी कहिये । बहुरि सूत्रमें इतिशब्द है सो परिसमाप्ति अर्थविषै है । तातैं ऐसा जानिये, जो, यथाख्यात चारित्रतैं सकलकर्मके क्षयकी परिसमाप्ति होय है । बहुरि सामायिकादिकका अनुक्रमका कहना है । ताकार अगले अगिले चारित्रविषै गुणकी विशुद्धताकी वृद्धि है ऐसें जनाया है ॥
इहां विशेष कहिये हैं, सर्वसावद्ययोगका अभेदकार त्याग करै सो सामायिक है । याका शब्दार्थ ऐसा भी किया है, जो, प्राणीनिके घातके कारण जे अनर्थ तिनकूं आय ऐसा नाम कहिये' सम ऐसा उपसर्ग देनेते एकीभूत अर्थ भया । तैं अनर्थ एकठ्ठे भये होय तिनकू समाय ऐसा कहिये । ते समाय जाका प्रयोजन होय सो सामायिक कहिये । तातै
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