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सर्वार्थ
अ. .
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। प्रधान है, तातै विना तत् शब्द ताका ग्रहणका प्रसंग आवै है। ताते याके प्रसंग दूरि करनेकों तत् शब्द है। जातें l ज्ञानचारित्र ए दोय हेतु नांही वणै है । कैसे ? केवलज्ञान तौ श्रुतज्ञानपूर्वक है, ताते निसर्गपणां नांही संभवै । बहुरि श्रुतज्ञान परोपदेशपूर्वक ही है । स्वयंबुद्धकै श्रुतज्ञान हो है सो भी जन्मांतरके उपदेशपूर्वक है । ताते याकै भी निसर्गजपनां नांही । बहुरि मति अवधि मनःपर्ययज्ञान निसर्गज ही हैं । इनिकै अधिगमजपनां नाही । कोई कहे- ज्ञान
वचसामान्य तौ दोय हेतुतै उपजै ऐसा आया । ताका उत्तर- इहां सामान्य अपेक्षा नाही विशेपापेक्षा है। दर्शनके भेद
निका निकी अपेक्षा तीनूं प्रकारके के दोऊ हेतु संभवे हैं। तैसें ज्ञानके भेदनिमें जुदा जुदाकै दोऊ हेतु नाही । बहुरि चारित्र पान है सो अधिगमज ही है । जात श्रुतज्ञानपूर्वक है। तातै मोक्षमार्गका संबंध न लैनेर्ले इहां तत् शब्द कह्या है ॥ बहुरि प्रश्न- जो निसर्ग भी ज्ञानका नाम, अधिगम भी ज्ञानहीका नाम, उपदेश विना उपदेशका ही भेद है। ऐसे होते ज्ञानहीतें सम्यक्त्वका उपजना ठहया । तब ज्ञान कारण ठहया । अरु सिद्धांत ऐसा है, जो सम्यग्दर्शन सम्य
होय है। सो यह कैसे ? ताका उत्तर- सम्यग्दर्शनके उपजावने योग्य ज्ञान ज्ञानावरणीयके विशेपत वाद्य परोपदेशत पहलें होय है । तिसतै सम्यग्दर्शन उपजै है। पीछे सम्यग्दर्शन होय तव सम्यग्ज्ञान नाम पावै । तातें यहु । अपेक्षा जाननी । याकी उत्पत्तीका विशेप ऐता है- अंतरंग तौ दर्शनमोहका उपशम क्षयोपशम क्षय होय । वहुरि बाह्य द्रव्य क्षेत्र काल भावादि समस्त कारण मिलै तव उत्पत्ति होय ॥ इहां कोई पूछ दर्शनमोहका उपशमादिक कारण है, तो सर्व ही प्राणिनिकै सदां ही क्यों न होय ? ताका उत्तर-दर्शनमोहका उपशमादि करणहारा भी प्रतिपक्षी द्रव्य क्षेत्र काल भाव हैं। ते कौंन सो कहिये ? जिनेंद्रविबादिक तौ द्रव्य हैं। समवसरणादिक क्षेत्र हैं । अर्द्धपुद्गलपरिवर्तनादिक काल है । अधःप्रवृत्तिकरणादिक भाव है । इनिके होते दर्शनमोहादिकका उपशमादि हो है । सो इनिका निमित्त होनां भव्य जीवहीके है । अभव्यकै नाही होय है । यह वस्तुस्वभाव है । ऐसें निकटभव्यकै दर्शनमोहका उपशमादिक अंतरंग कारण होते वाह्य निसर्ग तथा अधिगम ज्ञान होते सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति होय है ॥ ___ आग तत्त्व कहा है ? ऐसा प्रश्न होते तत्त्वको कहै हैं -
जीवाजीवास्रववन्धसँवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ॥ ४ ॥ याका अर्थ-- जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष ये सात है ते तत्त्व हैं ॥ तहां चेतनालक्षण | तो जीव है । सो चेतना ज्ञानचेतना, कर्मचेतना कर्मफलचेतना ऐसे अनेकरूप है। यात उलटा चेतनारहित होय सो