________________
पर्वार्थ
18' कारण है। अर पूर्णता साक्षात् मोक्षका कारण है ॥ बहुरि यहु मोक्षमार्गका स्वरूप विशेषरूप असाधारण जाननां । हा
सामान्यपर्ने कालक्षेत्रादिक भी मोक्षप्रति कारण हैं। तातें सम्यग्दर्शनादिक ही मोक्षमार्ग है यह नियम जाननां । बहुरि ऐसा नियम न कहनां, जो ये मोक्षमार्ग ही है। ऐसे कहतें ए स्वर्गादि अभ्युदयके मार्ग न ठहरै। तातें पूर्वोक्त ही कहनां ॥ कोई कहै तप भी मोक्षका मार्ग है, यह भी क्यों न कह्या ? ताका उत्तर जो तप है सो चरित्र स्वरूप है । सो चारित्रमें
वचHe आयगया ॥ कोई कहै, सम्यग्दर्शनादि मोक्षके कारण हैं तो केवलज्ञान उपजै ताहीसमय मोक्ष हुवा चाहिये। ताकू कहिये, जो
नि का टी का अघातिकर्मके नाश करनेकी शक्ति आत्माकी सम्यग्दर्शनादिककी सहकारिणी है। तथा आयुःकर्मकी स्थिति अवशेष रहै
पान अ.. है तातें केवलीका अवस्थान रहै है। वह शक्ति सहकारिकारण मिलै तब मोक्ष होय है। बहुरि या सूत्रकी सामर्थ्यतें मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान मिथ्याचारित्र संसारके कारण हैं ऐसा भी सिद्ध हो है॥ आगें आदिविर्षे कह्या जो सम्यग्दर्शन ताका लक्षणनिर्देशके आर्थ सूत्र कहे हैं।
॥ तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ॥ २॥ याका अर्थ- तत्त्वकार निश्चय किया जो अर्थ ताका जो श्रद्धान सो सम्यग्दर्शन है ॥ ' तत् । ऐसा शब्द सर्वनाम पद है तातें सामान्यवाचक है। याकै भाव अर्थवि त्वप्रत्यय होय है। तब तत्त्व ऐसा भया । याका यहु अर्थ, जो जा वस्तूका जैसा भाव तैसा ही ताका होना ताकू तत्त्व कहिये ॥ बहुरि “ अर्यते इति अर्थः " जो प्रमाणनयकार निश्चय कीजिये ताकू अर्थ कहिये । सो तत्त्व कहिये यथावस्थितस्वरूपकरि निश्चय निर्बाध होय सो तत्त्वार्थ ऐसे अनेकांतस्वरूप प्रमाणनयसिद्ध है, ताकू तत्त्वार्थ कहिये ॥ अथवा तत्त्व कहिये यथावस्थित वस्तु, सो ही अर्थ कहिये निश्चय कीजिये सो तत्त्वार्थ अभेदविवक्षाकार ऐसा भी अर्थ है। याका श्रद्धान कहिये प्रतीति रुचि ताकू तत्त्वार्थश्रद्धान कहिये। तत्त्वार्थ जीवादिक हैं ते आगै कहसी ॥ ___इहां प्रश्न- जो 'इशि' ऐसा धातु है सो देखनेके अर्थवि है । तातें श्रद्धान अर्थ कैसे होय ? ताका उत्तरधातुनिके अनेक अर्थ हैं। तातै दोष नांही। बहुरि कहै, जो प्रसिद्ध अर्थ तो देखना ही है, ताऊं क्यों छोडिये? ताळू
कहिये, इहां मोक्षमार्गका प्रकरण है, सो यामैं मोक्षका कारण आत्माका परिणाम है। सो ही लैणा युक्त है । देखना | अर्थ लीजिये तो देखणां तौ चक्षु आदि निमित्तकरि अभव्य आदि सर्व जीवनिकै है। सो सर्वहीकै मोक्षका कारणपणा की आवै । ताते वह अर्थ न लियां । इहां प्रश्न- जो अर्थश्रद्धान ऐसा ही क्यों न कह्या ? ताका उत्तर- जो ऐसें कहै