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________________ सवार्य- सो टीका ॥ व्यधिकादिगुणानां तु ॥ ३६ ॥ याका अर्थ- दोय अधिक गुणके परमाणुनिकही बंध होय है । दोय गुण जामें अधिक होय सो ब्यधिकगुण कहिये । सो कौन दोय गुण ? परमाणुतें दोयगुण अधिक परमाणु जामें च्यारि गुण है सो है । बहुरि इहां आदिशद्धकार तीनिगुण सिदि परमाणुतें जामें पांचगुण होय सो दोय अधिक गुण है । इत्यादिक दोयगुण आधिक समानजातीय तथा असमानजातीय RI निका परमाणुनिके बंध होय है, अन्यकै नाही होय है । सोही कहिये है, दोयगुण सचिक्कणका जामें होय ऐसै परमाणुका पान । एकगुण स्निग्धकरि तथा दोयगुण स्निग्धकार तथा तीनिगुण स्निग्धकरि बंध नाहीं हो है । जामें च्यार गुण स्निग्धका २३६ होय ताकार बंध होय है । बहुरि तिसही दोयगुण स्निग्धके पांचगुण स्निग्धकार तथा छहगुण स्निग्धकार तथा सात आठ आदि संख्यात असंख्यात अनंतगुण स्निग्धकार भी बंध नाही होय है । ऐसें तीनिगुण स्निग्धके पांचगुण स्निग्धकरि बंध होय है । तिससिवाय एक दोय तीनि च्यारि तथा छह सात आदि अनंतपर्यंत गुणसहित परमाणुनिकार बंध नाहीं है । बहुरि च्यारिगुण स्निग्धपरमाणुकै छहगुण स्निग्धपरमाणुकार बंध होय है। वाकी पहले तथा अगिले गुणसहित परमाणुनिकरि बंध नाहीं है । ऐसेंही दोयगुण अधिक सर्वके विर्षे जोडना । बहुरि तैसेंही एक दोय तीनिगुण रूक्षपरमाणुनिकरि दोयगुण रूक्षपरमाणुकै बंध नाहीं है । च्यारिगुण रूक्षपरमाणुकै बंध होय है । तिसकै पांच गुणरूक्षादिकरि बंध नाहीं है । ऐसेंही तीनिगुण रूक्षादिकै भी दोयगुण अविककरि बंध जानना । ऐसेही भिन्नजाति जे रूक्षके सचिक्कण ताकार दोयगुण 999000 कर तीनगुण साव नाहीं है । च्याधिक सर्वके विवे जारी Ka/ अधिककरि बंधा भी दोयगुण अविण रूक्षपरमाणुकै बंधा बहुरि तैसेंही एक पहले तथा अगिले गुणकरि बंध नाहीं है। ही भिन्नजात पांच गुणरूक्षादिकार परमाणुनिकरि दोयगुण ।। क इहां उक्तं च गाथा है, ताका अर्थ-स्निग्धके स्निग्धकार दोयगुण अधिककार बंध होय है। तथा रूक्षके रूक्ष करि दोयगुण अधिककार बंध होय है । जघन्यगुण वर्जिकरि समगुण होऊ तथा विपमगुण होऊ दोयगुण अधिकहीकार | बंध है अन्यकार नाहीं है । बहुरि सूत्रमें तु शब्द है सो पहले दोय सूत्रकै निषेधके अर्थ है । तिस निषेधके व्यावर्त नके अर्थ है । तथा बंधकी विधिळू जनावै है । बहुरि इहां कोई अन्यमती तर्क करै, जो, परमाणु तौ सदा बंधरूपही ।। 1।। है । परमाणु बुन्धिकार कल्पना कीजिये है । तैसे एकपरमाणुके विपें अविभागपरिच्छेद कल्पिये है । तैसें बंधनरूप स्कंध || है ताके वि परमाणु कल्पिये है । तुमने काहू परमाणुके बंध बताया काहूकै निषेध बताया सो यहू युक्त नाहीं । ताका | समाधान, जाते आगममें पुद्गलके छह भेद कहे हैं । पृथ्वी जल छाया च्यार इन्द्रियनिके विपय रसादिक कार्मणस्कंधAI परमाणु ऐसें । इनमें परमाणु कह्या है, सो सत्यार्थ प्रत्यक्षज्ञानी देखिकरि कह्या है। तातें कल्पित नाहीं है । ताते केई | परमाणु ऐसें । इममें पुद्गलके छह भेद कमाणके बंध बताया काहूक मिरच्छेद कल्पिये है । तैसें बंधवधरूपही है।
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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