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वचनि का
पान
हा भावार्थ- इस शास्त्रविपैं मोक्षमार्गका उपदेश है। सो जो घातिकर्मका नाशकरि सर्वज्ञ वीतराग भया होय, सोही |
मोक्षमार्गका प्रवर्तावनहारा आप्त है। तिसहीकू नमस्कार किया है। जाते सर्वज्ञवीतरागका प्रवर्ताया ही मोक्षमार्ग प्रमाणसिद्ध होय । काहेत ? जाते जो सर्वज्ञ न होय तो अज्ञानतें अयथार्थ भी कहै। तथा रागद्वेपसहित होय तौ क्रोध, मान, माया,
लोभ आदि कपायतें अन्यथा कहै । सो प्रमाण नांहीं। तातें सर्वकौं जाणै, काहूर्ते रागद्वेप न होय, ताहीके वचन प्रमाण सर्वार्थ
होय । वैही वस्तूका स्वरूप यथार्थ प्ररूपै। याहीते ऐसे विशेपणयुक्तकों नमस्कार कीया। सो ऐसे तीर्थकर तथा सामान्यसिद्धि टी का
केवली अरहंत भगवान् हैं। इनहीकू परमगुरु कहिये । बहुरि जिनिके एकदेश घातिकर्मका नाश एकदेशपणे परोक्ष समस्ततत्त्वनिका संक्षेपज्ञान है, तथा तिस संबंधी रागद्वेप भी जिनकै नाही है ते अपरगुरु जानने। ते गणधरादि सूत्रकारपर्यंत आचार्य जानने । बहुरि जे सर्वथा एकांततत्त्वका प्ररूपण करै हैं ते गुरु नांही हैं तिनिके वचन प्रमाणविरुद्ध हैं, ते अपने तथा परके घातक हैं, तिनिकों नमस्कार भी युक्त नाही ॥
अथवा इहां ऐसा आशय जानना । जो सर्वज्ञ वीतराग आप्त होय सो ही शास्त्रकी उत्पत्ति तथा शास्त्रका यथार्थज्ञान होनेको कारण है। तातै शास्त्रकी आदिवि निर्विघ्नपणे शास्त्रकी समाप्तीकै अथीं ऐसेही विशेपणयुक्तकों नमस्कार करना योग्य है ॥ इहां कोई कहै, आप्तके नमस्कारतें पापका नाश होय है तातें विघ्नका उपशम होय तव शास्त्रकी समाप्ति निर्विघ्नपणे होय है। तातें ताकुं नमस्कार योग्य है ॥ ताकू कहिये; पापका नाश तौ पात्रदानादिकतें भी होय है सो आप्तका नमस्कारका नियम कहां रह्या ? कोई कहै ; परममंगल आप्तका नमस्कार ही है। सो यहभी न कहनां। धर्मके अंग हैं ते सर्वही मंगल हैं। कोई कहै : नास्तिकताका परिहार तो आप्तडूं नमस्कार कीयें होय है, याहीतें श्रद्धानी पुरुप शास्त्रको आदरे है। ताकू कहिये, नास्तिकताका परिहार तो मोक्षमार्गके समर्थन करनेतेही होय है। आप्तके नमस्कारका | नियम कैसे रहै ? कोई कहै; शिष्टाचार पालनेकौं आप्तडूं नमस्कार करनांही। तहांभी एही उत्तर । तातें यहूही युक्त है, शास्त्रकी उत्पत्ति तथा ताका ज्ञान होनेंकू आप्त ही कारण है ताही हेतूतें आप्तकुं नमस्कार युक्त है, ऐसा आशय जानना॥ इहां कोई कहै; वक्ताका सम्यग्ज्ञानही शास्त्रकी उत्पत्ति तथा ज्ञान होनेफू कारण है, आप्तका ही नियम कैसे कहो हो ? तहां ऐसा उत्तर, जो वक्ताका सम्यग्ज्ञान भी गुरूपदेशके आधीन है। गणधरदेवनकै भी सर्वज्ञके वचनके अनुसार सम्यग्ज्ञान है। तातें आप्तहीका नियम है ॥ वहुरि इहां कोई पूछै; तुम तत्त्वार्थशास्त्रकी वचनिका करौ हो, सो याकू तत्त्वार्थशास्त्र ऐसा नाम कैसे आया ? ताका उत्तर, शास्त्रका लक्षण यामें पाइए है। कैसे ? सोही कहिये है। अक्षरनिके समुदायकू तौ पद कहिये। बहुरि पदनिके समुदायकू सूत्र कहिये ताकू वाक्य भी कहिये, योग भी कहिये, लक्षण भी कहिये । बहुरि सूत्रके
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