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सर्वार्य
वच
सिद्धि
पान
देह जिनिका तो भी अनशन कायक्लेशादि तपते छूट नांही भयानक मसाण पर्वतके शिखर गुफा दरी कंदरा शून्यग्राम । । आदिविर्षे दुष्ट यक्ष राक्षस पिशाच वेतालरूप विकार होतें भी तथा कठोर जे स्यालनिके रुदन निरंतर सिंह व्याघ्र
आदि तथा दुष्ट हाथीनिके भयानक शब्द सुननेते भी तथा चोरादिका जहां विचरणा ऐसे भयानक प्रदेशनिविर्षे तिष्ठै सो घोरतप है। बहुरि तेही मुनि तपका योगके बधावनेकैवि तत्पर ते घोर पराक्रम हैं । बहुरि बहुतकालतें ब्रह्मचर्यके | धारक अतिशयरूप चारित्रमोहनीय कर्मका क्षययोपशमतें नष्ट भये हैं खोटे विकाररूप स्वप्न जिनिकै ते घोर ब्रह्मचर्यवान् निका हैं । ऐसें सात तपोन्द्धि है ॥ बहुरि पांचवा बलऋद्धि तीन प्रकार है। तहां मनाश्रुतज्ञानावरण वीर्यातराय कर्मका क्षयोपशमका प्रकर्ष होते अंतर्मुहूर्तमें समस्तश्रुतका अर्थ चितवनेकी सामर्थ्य जिनिकै होय ते मनोबली हैं । बहुरि मनोजिव्हा श्रुतज्ञानावरण वीर्यातरायका क्षयोपशम अतिशयरूप होते अंतर्मुहूर्तमें सकलश्रुतके उच्चारणविर्षे समर्थ होय निरंतर उच्चस्वरतें उच्चारण करतें भी खेदरहित कंठस्वर भंग न होय ते वचनबली हैं । बहुरि वीर्यातरायका क्षयोपशमतें असाधारण कायका बल प्रगट होतें मासिक चातुर्मासिक वार्षिक प्रतिमा योग धारतें भी खेदरहित होय ते कायबली हैं । बहुरि छठी औषधऋद्धि सो आठ प्रकार है। तहां असाध्य भी रोग होय तौ तिनिके स्पर्शन आदिकरि नष्ट होय जाय तहां जिनके पादका स्पर्शनांही औषध तथा थूकही औषध तथा पसेव सहित रज सो जल्ल कहिये सोही औषधी तथा कान दांत नासिका नेत्रका मलही औषधी तथा विमल तथा मूत्रही औषधी तथा अंग उपांग नख दंत केश आदिक | स्पर्शी पवन आदि सर्वही औषधी, तथा तीव्र जहरका मिल्या भी आहार जिनिकै मुखमैं गये विषरहित होय ते
आस्याविष हैं, तथा जिनिके देखनेमात्रकारही तीव्र जहर दूरि हो जाय सो दृष्टयविष हैं ऐसे आठ औषधीऋद्धि हैं। बहुरि सातमी रसऋद्धि है । सो छह प्रकार है । तहां महातपस्वी मुनि जो कदाचित् क्रोध उपजै काहूकू कहै तूं मरिजा तौ तिनिके वचनतें तत्क्षण मरै ते आस्यविष हैं । बहुरि कदाचित् क्रोधकार क्रूरदृष्टीकरि देखै तौ पैला मरि जाय सो दृष्टिविष है । बहुरि विरस भी भोजन जिनकै हस्तविर्षे पड्या क्षीररसरूप हो जाय तथा जिनिका वचन दुर्बलकू क्षीरकी ज्यों तृप्ति करै सो क्षीरस्रावी है । बहुरि जिनिके हस्तविर्षे पड्या आहार नीरस भी होय सो मिष्टरसवीर्यपरिणामरूप होय जाय तथा जिनिका वचन सुननेवालेनिके मिष्टरसके गुण ज्यों पुष्ट करै सो मधुस्रावी है। बहुरि जिनिके हस्तविर्षे पड्या अन्न रूक्ष भी हाय सो घृतरसका वीर्यके पाककू प्राप्त होय तथा जिनिका वचन वृतकी ज्यों प्राणीनिक तृप्ति करै सो सर्पिःश्रावी है । वहुरि जिनिके हस्तविर्षे पड्या भोजन अमृत हो जाय तथा जिनिका वचन