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सिद्धि
निका
विद्याकर्म आर्य हैं । बहुरि धोबी नाई लूहार कुमार सुनार आदि शिल्पकर्म आर्य हैं । बहुरि चंदनादि सुगंध, घृतादिरस, शाल्यादि धान्य, कार्पासादि वस्त्र, मोती आदि जवाहर अनेकप्रकार द्रव्यका संग्रह करनेवाले अनेक प्रकार वाणिज्यकर्म आर्य हैं । बहुरि अल्पसावद्यकर्म आर्य देशविरत श्रावक है । बहुरि असावद्यकर्म आर्य सकलविरत मुनि है ॥ बहुरि
चारित्र आर्य दोय प्रकार हैं । तहां चारित्रमोहके उपशमतें तथा क्षयतै बाह्यके उपदेशविनाही अपनी शुद्धतातें चारित्रसर्वाय
1 परिणाम प्राप्त भये ते अभिगतचारित्र आर्य हैं । बहुरि चारित्रमोहके क्षयोपशम होते बाह्यके उपदेशनै चारित्रपरिणाम || टीका जिनिकै होय ते अनभिगतचारित्र आर्य हैं ।
पान बारे दर्शनआयें दश प्रकारके हैं । ते सम्यग्ग्रहणके कारणकी अपेक्षातें जानने । तहां जे सर्वज्ञ अर्हतप्रणीत आगमकी आज्ञामात्र कारणते श्रद्धावान् होय, ते आज्ञासम्यक्त्ववान् कहिये । बहुरि निर्ग्रथमोक्षमार्गके दर्शन श्रवणमात्रौं श्रद्धावान् होय, ते मार्ग श्रद्धावान् हैं । बहुरि तीर्थंकर आदिके पुराण आदिके उपदेशके निमित्तते श्रद्धावान् होय, ते उपदेश रुचिमान् आर्य हैं । बहुरि मुनिनिके आचार श्रुतके श्रवणमात्रते श्रद्धावान् होय, ते सूत्रसम्यक्त्ववान् हैं । बहुरि बीजपदरूप जे सूक्ष्म अर्थ ताके निमित्तते श्रद्धावान् होय, ते वीजरुचिमान् हैं । बहुरि जीवादिपदार्थका संक्षेप उपदेशते श्रद्धावान् होय, ते संक्षेपरुचि है । बहुरि अंगपूर्व में जैसे कहै तैसें विस्ताररूप प्रमाणनयादिकतें निरूपण किये जे तत्त्वार्थ, तिनिके श्रवणते श्रद्धावान् होय, ते विस्ताररुचि हैं । बहुरि वचनके विस्तारविनां सुन्या अर्थके ग्रहणतें श्रद्धावान् होय, ते अर्थदर्शनवान् है । बहुरि द्वादशांगके जाननेते श्रद्धावान् होय, ते अवगाढरुचि हैं । बहुरि परमावधि केवलज्ञानदर्शनतें जीवादि पदार्थनिकं जाने जो “ आत्मा उज्वल श्रद्धानरूप भया " तहां परमावगाढरुचि कहिये ऐसे ये दश दर्शन आर्य है ॥
बहुरि ऋद्धिप्राप्त आर्य सात प्रकार कहे ते इहा आठ प्रकार भी कहे हैं । तहां बुद्धिवादीके अठारह भेद हैं। तहां केवलज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान तीन तो पहलै कहै तेही जानने । बहुरि संवारे क्षेत्रवि जैसै कालादिके सहायतें बीज बोया अनेक फल दे तैसें नोइंद्रिय श्रुतज्ञानावरण वीर्यातरायके क्षयोपशमके प्रकर्प होते एकवीजके ग्रहणते अनेक पदार्थका ज्ञान होय सो वीजवृद्धि है । बहुरि जैसै कोठारीके धरे न्यारे न्यारे प्रचुर धान्य बीजतै विनाश न भये कोठेहिमैं घरे है; तैसें आपही जाणे जे अर्थके वीज प्रचुर न्यारे न्यारे बुद्धिमैं बणे रहे जिस काल चाहै तिस काल काढे
ताकू कोष्ठयुद्धि कहिये । बहुरि पदानुसारी तीन प्रकार अनुश्रोत, प्रतिश्रोत दोऊरूप । तहां एकपदका अर्थतें सुनि आदि12 वि तथा अंतवि तथा मध्यवि4 सर्वग्रंथका अवधारण करना, सो पदानुसारी है । बहुरि चक्रवर्तीका कटक बारह
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