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सिद्धि
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३) सुपमा सदा अवस्थित है । तहाके मनुष्यनिकी आयु दोय पल्यकी है । च्यारि हजार धनुष्यका काय है । दोय दिनकै ||
अंतरते आहार करै है । बहुरि शंखवर्णधवल शरीर है । वहरि पांच देवकुरुक्षेत्रनिवि सुपमासुपमा सदा अवस्थित है ।
तहांके मनुष्यनिकी आयु तीनपल्यकी है । छह हजार धनुपकी काय है । तीन दिनके अंतररौं आहार करै है । | सर्वार्थ1 सुवर्णवर्ण शरीर है ॥ __ आगें उत्तरदिशानिकेविर्षे कहा अवस्था है ? ऐसें पू7 सूत्र कहै है ।
निका टीका
पान ॥ तथोत्तराः॥ ३० ॥ याका अर्थ- जैसे दक्षिणदिशाकेनिवि कहे तैसेही उत्तरदिशाके जानने । हैरण्यवतका तौ हैमवतककेनिकै तुल्य है।। रम्यकके हरिवर्पकेनिकै तुल्य है । उत्तरकुरवकका देवकुरवकनिकै समान है । ऐसें जानना ॥ आगें विदेहक्षेत्रनिकेवि कहा स्थिति है ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
विदेहेषु सङ्ख्येयकालाः ॥ ३१ ॥ याका अर्थ- पंचमेमसंबंधी पंचविदेहक्षेत्रनिवि मनुप्यकी आयु संख्यातवर्षकी है । तहां काल सुपमदुःपमाका अंतिसारिखा सदा अवस्थित है । काय पांचसै धनुपका है। नित्य आहार करै है । उत्कृष्ट आयु एककोडि पूर्वका है। जघन्य आयु अंतर्मुहूर्तका है। तहां पूर्वके परिमाणकी गाथाका अर्थ- सतरि लाख कोडी वर्प वहरि छपनहजार कोडि वर्ष एक पूर्व होय है। ___आर्गे, कह्या जो भरतक्षेत्रका विस्तार ताळू अन्यप्रकारकरि कहै हैं -
॥ भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ॥ ३२ ॥ याका अर्थ- जंबूद्वीपका विस्तार लाख योजनका है । ताकै एकसो निवै भाग करिये तिनिमें एक भाग मात्र विस्तार भरतक्षेत्रका है । सो पूर्व का पांचसै छवीस योजन छह कला परिमाण हो है ॥
आगें, कह्या था, जो, जंबूद्वीपकू वेढिकरि वेदी तिष्टै है, तातै परै लवणसमुद्र दोय लाख योजन विस्ताररूप वलयाकार तिष्ठै है, तातें परै धातकीखंड द्वीप च्यारि लाख योजन वलयविस्ताररूप है । तहां क्षेत्र आदिककी संख्याकी विधिका ज्ञानके अर्थि सूत्र कह्या है--