SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BIH अविग्रह कहिये । ऐसी अविग्रह गति है, सो मुक्तजीवकै है । इहां मुक्तजीवका नाम कैसे जानिये ? जो अगले सूत्रमैं संसारीका नाम है, तातें जानिये यहां मुक्तजीव है । बहुरि इहां कोई तर्क करै है, अनुश्रेणि गति है, इस सूत्रकरिही | अन्य गतिका निपेध भया, फेरि इस सूत्रकरि कहा प्रयोजन रह्या ? ताका समाधान, पूर्वसूत्रविर्षे अनुश्रेणि गति तो कही। तहां इस सूत्रकरि ऐसा जानिये, जो, कहूं श्रेणीविना भी गमन है, ताकै अर्थि यह सूत्र है । इहां फेरि कहै, देशसर्वार्थ ३ कालका नियम तहांही कह्या है । ताकू कहिये, सूत्रविर्षे देशकालका नियम कह्या नाही, तातें इस सूत्रः जान्या जाय है। 8. आगैं, जो कर्मके संगतै रहित असंग जो आत्मा ताकै तौ प्रतिबंधरहित लोकके अंतताई गमनकालके नियमरूप भ. २ जानिये है । बहुरि देहसहित जो संसारी जीव है ताकी गति प्रतिबंधसहित है कि मुक्त आत्माकी ज्यों सीधी है ? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं सिद्धि टीका वचनिका पान १३३ ॥ विग्रहवती च संसारिणः प्राक् चतुर्व्यः ॥ २८॥ याका अर्थ- संसारी जीवकी गति विग्रहसहित हैं मोडा खाय है। तहां च्यारि समयकै पहली पहली तीन मोडारूप है ॥ इहां प्राक् चतुर्व्यः ऐसा शब्द तौ काल जो समय ताका नियमकै आर्थि है । प्राक् शब्दका मर्यादा अर्थ है । तहां चौथा समय पहली विग्रहवान् गति हो है । चौथावि विग्रह कहिये मोडा नाही है । इहां पूछे है, जो, चौथे समय विग्रहगति काहेरौं नाही ? ताका उत्तर, जो, प्राणी, सर्वोत्कृष्ट विग्रह है निमित्त जादू ऐसा क्षेत्रकू निष्कुट ऐसी संज्ञा है, तहां उपजनां होय तहां अनुश्रेणिका अभावते इपुगतिका अभाव होतें निष्कुटक्षेत्र पहुंचनेकू तीन जामें मोडा ऐसा त्रिविग्रहगति आरंभै है । तिस सिवाय ऐसा क्षेत्र नाही जामैं मोडा खाय पहूंचे। तातें तीनही समय विग्रह है । चौथे समयमैं नाही । इहां सूत्रमैं चशब्द है । सो संसारीकी गति विग्रहसहित भी है विग्रहरहित भी है ऐसा समुच्चयकै अर्थि है । इहां विशेष, जो, गति कही तिनकी संज्ञा आगमविर्षे ऐसी है इषुगति, पाणिमुक्ता, लांगलिका, गोमुत्रिका । तहां इपुगति तो विग्रहरहित है । ताका दृष्टांत जैसे इषु कहिये तीर चालै सो सीधा ठिकाणे पहुचै तैसे इषुगति है । याका काल एकसमयही है । सो संसारीनिकै भी हो है । बहुरि मुक्तजीवकै भी हो है । बहुरि पाणिमुक्ता विर्षे एक मोडा हो है । याका काल दोय समय है। तहां जैसैं पाणि कहिये हाथ ताविर्षे जलादिक द्रव्य होय ताकू क्षेपिये तब एक मोडा ले, सो यहु संसारीकैही होय है । बहुरि लांगलिका गति है ताविपें दोय मोडा ले हैं। याका काल तीन समय है । जैसै लांगल नाम हलका है ताकै दोय मोडा होय है यहु भी संसारीकैही है । बहुरि गोमृत्रिका गतिका
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy