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और उनके सिद्धान्त |
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द्वैतको पुनः प्रचलित करने के लियें तथा दैवी सृष्टि को कृतकृत्यकरने के लियें भूतलपर आचार्यरूप से पधारने का अनुग्रह किया ।
आपके प्रकट होने का एक कारण और भी था । आपके पूर्व जितने आचार्य हो गये थे उनने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य किया था । कितने ही नें श्रीभागवत की भी टीकाएं की थीं किन्तु उनसे लोकोपकार की जितनी आवश्यक थी उतनी पूर्ति न हुई । इसके अतिरिक्त सूत्रोंका अर्थ अक्षरों को खींच तान कर अपने२ सिद्धान्तमें बैठानेका प्रयत्न किया गया था और श्रीभागवतका तो अर्थ ही मानों और हो गया था । इसके लिये इन दोनों ग्रन्थोंका समन्वय करने के लियें भी आपका प्रादुर्भाव हुआ था । भगवान् को प्रिय लगे ऐसा अर्थ भगवान् के मुख के सिवाय और कौन व्यक्त कर सकता है । इसीलियें भगवानके मुखारविन्द श्रीमहाप्रभुजी का भूतलपर प्राकट्य हुआ । आपका सामर्थ्यभी अकुंठित था ।
भगवान् के मुखसे अग्नि प्रकट होता है । 'मुख अग्नि है' यह बात शास्त्रोंमें पाई जाती है । आधिदैविक अग्नि का स्थान भगवान् का मुखारविन्द है । निःसाधन जीवोंके सर्वदोषों को भस्म कर तथा उन्हें अपना प्रिय बनाकर अपने शरण में लेने के लियें अग्निको भावश्यकता थी । श्रीमहाप्रभुजी भी भगवान् के मुखारविन्द की आधिदैविक