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श्रीमद्वल्लभाचार्य ऐसे स्थलपर रहना उचित न जान अपनी पत्नी को लेकर काशीसे चल दिये। किन्तु मार्गमें ही प्रभुकी इच्छासे इलमागारूके गर्भ का चंपारण्य में पात हुआ। गर्भको निर्जीव मान दंपति उसे एक शमीवृक्षके नीचे पत्रोंसे ढक चल दिये । यवनोपद्रव शान्त होनेपर पुनः काशीजी आते समय जब उसी मार्गसे ये लोगे निकले, तब उसी शमीवृक्ष के नीचे एक अद्भुत चमत्कार दिखलाई दिया । दम्पतिने देखा कि शमीवृक्षके आगे एक अत्यन्त तेजवान् अग्नि का मण्डल है और उस मंडल के मध्य में एक अत्यन्त ही सुकुमार और तेजस्वी वालक पड़ा हुआ
खेल रहा है। बालकको देखतेही माताके दोनों स्तन पयःपूरित हो गये और एक अद्भुत स्नेह स्रोत दंपति के हृदय में प्रवाहित होने लगा। इलमागारू ने कहा 'स्वामिन् , यह पुत्र तो मेरा है । ' तब लक्ष्मणमट्टजी ने कहा 'भद्रे, यदि पुत्र आपका है तो अग्नि आपको मार्ग देगी । आप इसे लेलो ।' इलमागारू जैसे जैसे पुत्रके समीप जाने लगी अग्निदेव भी वैसेही वैसे लोप होते चले गये और अंतमें इल्लमागारूने अपने हृदयके रत्नको उठालिया। __ इस प्रकार भगवान् श्रीवल्लभाचार्य का भी जन्म श्रीकृष्णकी भांति हुआ था।
चंपारण्यको जानेके लिये पहले भुसावल जाना चाहिये चहांसे नागपुर, नागपुरसे रायपुर और रायपुरसे होकर राजिम । वहांसे तीन या चार माइलके अनन्तर चम्पारण्य मिलता है।