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________________ श्रमिवल्लभाचार्य जगह 'ओं' दिया है। यह भी आर्यसमाजका संकेत है। फिर लोगोंको भ्रममें डालनेके लिये मायावादकी झलक दिखाई है 'निखिलगुणविहीनं सर्वथा मेघशून्यं निगमपथसुगम्यं कल्पिताध्यस्तलोकम्' । किसी वैष्णवने ऐसा मङ्गलाचरण नहीं किया । इस श्लोककी रचनासे मालुम पडता है कि किसी मूर्खने यह श्लोक बनाया है । सबसे जबरदसा प्रमाण तो यह है कि आर्यसमाजका जो मुख्य लक्षण 'मूर्तिपूजा खंडन' है वह इसने सबसे पहले अपने ग्रंथमें किया है और वह भी 'नेदं यदिदमुपासते' इस श्रुतिका मनमाना अर्थ करके । इस श्रुतिका सत्य अर्थ क्या है यह मैने मूर्तिपूजामंडनमें लिखा है। श्रुतिका अर्थ देखिये यह है यद्वाचानभ्युदितं येन वागम्युद्यते। तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥ यत् लोका उपासते तत् मूर्त्यादिकं त्वं ब्रह्मैव विद्धि । कथं भूतं ब्रह्म, यत् वाचा लौकिकवाण्या वक्तुं न शक्यते । पुनः कथं येन प्रेरकेण वाक् उदिता भवति । अर्थात् जिसकी लोग उपासना करते हैं उस मूर्ति आदि को तू ब्रह्म जान । वह ब्रह्म लौकिक वाणीके द्वारा कहा नहीं जा सकता । उस ब्रह्मकी ही प्रेरणासे वाणीका उदय होता है। कृष्णदेव राजा जो एक प्रसिद्ध और उस समयमें दक्षिणका प्रतापी श्रेष्ठ वैष्णव राजा हो चुका है। उसकी
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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