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और उनके सिद्धान्त ।
हैं । व्याख्याता संप्रदायके मर्मज्ञ विद्वान् श्रीरमानाथ शास्त्रीजी हैं। संप्रदायके विद्यार्थी गण के लिये यह व्याख्यान आवश्यक होनेसे यहां पर प्रकाशित करना उचित समझा जाता है।
आचार्य शब्द की व्युत्पत्ति और रहस्य । १-श्रीमद्वल्लभाचार्यजीके नामके साथ 'आचार्य' शब्द है । इस आचार्यशब्दका क्या अर्थ है और भारतीय विद्वा
नोंने इसका कितना महत्व माना है यह यदि आप लोग _प्रथम समझ लेंगे तो आपको श्रीमद्वल्लभाचार्यके चरित्र
और गुणोंके श्रवण करनेमें बड़ा आनन्द आवैगा।।
२-'आचार्य' आपूर्वक चरधातुसे ण्यत् प्रत्यय लगने से सिद्ध होता है। किसीभी शब्दके अर्थजाननेमें व्याकरण कोष और आप्तवाक्य आदिप्रमाणोंकी आवश्यकता होती है । यहां आचार्य शब्दभी व्याकरण कोष और आप्तवाक्यसे एकार्थकही सिद्ध होता है । आचर्यते वा आचार्यते येन स आचार्यः । यह व्याकरण कहता है कि जो वेदवेदाङ्गार्थज्ञानी तदनुसार आचरण करता हो और लोकको वैसे आचरणोंकी शिक्षा देता हो वह आचार्य है। इस शब्दका मुख्य प्रवृत्ति निमित्त आचरण है । वह दो तरहसे सिद्ध है स्वयं करनेसे और दुसरोको वैसा आचरण करानेसे । वेदादिशास्त्रोक्त आचारोंका जो ज्ञान वह तो अपने आप प्राप्त