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और उनके सिद्धान्त।
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सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्यपाश्रयः।। मत्प्रसादावाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ॥१८-५६
मचित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि ॥१८-५८ __अर्थात् जो मनुष्य सर्व कर्म मेरा आश्रय लेकर करता है, वह मेरी कृपा से शान्त और नाश रहित पदको प्राप्त करता है। ___ मुझ में चित्त दृढ रखने से, मेरी कृपा से, सब भयों को (दुस्तर-काम क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि को) तिर जायगा।
परीक्षार्थ प्रश्न वैष्णवों का परम धर्म और कर्तव्य क्या है ? संगति और गृहस्थी के दोष किस प्रकार निवृत्त होसकते हैं ? वैष्णवों के तीन प्रकार के कर्तव्य क्या हैं ? प्रभु के पास क्या कभी प्रार्थना विधेय है ? संक्षेप में वैष्णवों के कर्तव्य कहो ।