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और उनके सिद्धान्त।
'भाइयो, यह भुजा उस समय की है जव इन्द्रने कोप करके ब्रजके ऊपर सात दिनतक मेघकी मूसलधार वृष्टि की थी और जिसके प्रतीकार स्वरूप सात वर्ष के सांवले श्रीकृष्णने सात दिन पर्यन्त अपनी कनिष्ठिका पर गिरिराज धारण कर व्रजभक्तोंकी रक्षा की थी। वही भुजा यह है । आप स्वयं इस समय श्रीगिरिराज की कन्दरा में विराजमान हैं । इस समय हमें केवल भुजाका ही दर्शन दिया है। आपकी इच्छा होनेपर मुखारविन्दका दर्शन भी हम कर सकेंगे' । वृद्ध की यह बात सुनकर व्रजवासी प्रसन्न हुए तथा भुजा के प्राकट्य से अपना परम सौभाग्य उदय हुआ मान भुजाकी षोडशोपचार पूजा करने लगे। इतनाही नहीं, नागपंचमी को वे एक विशेष सौभाग्यका दिन मानने लगे
और उस दिन प्रत्येक वर्ष में वहां एक बडा मारी मेला लगने लगा।
इस घटनाके ६९ वर्ष अनन्तर अर्थात् संवत् १५३५ में आपने अपने मुखारविन्द के दर्शन ब्रजभक्तों को कराये । श्रीमहाप्रभुजी भी इसी दिन भूतल पर पधारे थे। __उस समय व्रजमण्डल प्रधानतः गौओंका निवास था। एक २ घरमें हजार २ गाय रहती थीं। सदू पांडे नामके एक ब्राह्मण के यहां भी एक हजार गायें बंधती थीं। उन एक हजार गायो में से एक गाय श्रीनन्दरायजी के गौओं