SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ श्रीमद्वल्लभाचार्य ___ अर्थात्-भगवान् श्रीकृष्ण शास्त्रों के अध्ययन या अध्यापन से भी प्रसन्न नहीं होते, अपने असीम वुद्धिशाली या धारणशील होने पर भी वे प्रसन्न नहीं होते, परंतु जिसे भगवान् कृपाकर अपना समझते हैं और उस पर कृपा दृष्टि का पात करते हैं उसी को परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। __ भगवान् ने श्रीगीतोपनिषद् मे भी आज्ञा की है 'भक्त्याहमेकया ग्रामः ।' अर्थात् मैं यदि प्रसन्न हो सकता हूं तो केवल भक्ति से ही । और कोई भी उपाय से मैं प्रसन्न नहीं किया जा सकता । ठीक है, जिसके लक्ष्मी स्वयं पैर दबाती है उसे क्या हम क्षद्र पैसों का लोम देकर प्रसन्न कर सकते है ? अथवा जो वाणी के ईश हैं जिनमें से सरस्वती देवी अपनी शक्ति लेकर अपना निर्वाह करती हैं उन्हें क्या हम अपनी टूटी फूटी स्तुति से रिझा सकते हैं ? इस लिये जीव कुछ भी नहीं है उसकी कृति ही क्या है ? अतएव यदि अपने तुच्छ बल पर विश्वास रख भगवान् को वश करना चाहे तो यह जीव की मूर्खता है । भगवान् तो भक्तिवश्य पसिद्ध हैं। ___ यह भक्ति ही 'पुष्टि' है क्यों कि यहां कार्यकारणका ऐक्य समझा गया है। 'पुष्टिमार्ग' के कहने से ही भक्तिमार्ग समझ लेना चाहिये । पुष्टिमार्गीय यावद् ग्रन्थों को हम यदि भगवदनुग्रहशास्त्र कहें तो यह उचित ही है। क्यों कि इन शास्त्रों में भगवदनुग्रह पर ही विशेष बल दिया गया है।
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy