________________
*0 J
I
B &
ॐ
समर्प
वंदनीय गुरुदेव
कविवर्य श्री नानचंदजी स्वामिन् !
अभ्यास, चिन्तन तथा असाम्प्रदायिकता का इस सेवक में जो भी विकास हुआ है वह सब आपकी ही असीम कृपा का फल है । इस
भारवश यह पुस्तक आपके करकमलों में सादर समर्पण करते हुए मुझे परम हर्ष होता है ।
मुनि सौभाग्य