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________________ परिषद 45 गुरुदेव बोले - १३ "मैंने सुना है ।" आयुष्यमान भगवान सुधर्मस्वामी ने इस तरह कहा, यहां पर वस्तुतः श्रमण भगवान काश्यप महावीर ने २२ परिषहों का वर्णन किया है। साधक भिक्षु ( उनको ) सुनकर, ( उनका स्वरूप ) जानकर (उनको जीतकर, ( उनका ) पराभव करके भिक्षाचरी में जाते हुए यदि परिषहों से घिर जाय तो भी कायर नहीं बनता । शिष्यः -- भगवन् ! वे बाईस परिषह कौन से है जिनका वर्णन श्रमण भगवान काश्यप महावीर ने किया है और (जिनको) सुनकर, जानकर, जीतकर तथा ( उनको ) तिरस्कृत करके भिक्षाचरी में जाता हुआ भिक्षु, परिषहों से घिर जाने पर भी कायर नहीं बनता ? प्राचार्यः - हे शिष्य ! वे यही २२ परिषह है जिनका वर्णन श्रमण भगवान काश्यप महावीर ने किया है, जिनको सुनकर, जानकर, जीतकर और पराभव करके भिक्षाचरी में जाता हुआ भिक्षु, परिषहों से घिर जाने पर भी कायर नहीं बनता । उनके नाम ये है:-- (१) क्षुधा ( भूख ) परिषह, ( २ ) पिपासा ( प्यास ) परिष्ह, (३) शीत ( ठंडी ) परिवह, ( ४ ) उष्ण (गर्मी) परिषह, (५) दंशमशक (डांस मच्छर) परिषह, ( ६ ) प्रवस्त्र परिषह, (७) अरति ( अप्रीति ) परिषह, (८) ' स्त्री परिषह, (६) चर्या (गमन) परिषह, (१०) निपद्या (बेठनी ) परिषद, (११) श्राक्रोश ( कठोर वचन ) परिषह, (१२) वध ( मारपीट ) परिह, (१३) शय्या ( शयन) परिषह (१४) याचना ( मांगना ) परिषह (१५) अलाभ ( न मिलना ) परिपह, (१६) रोग (बीमारी) परिषह, (१७) वृणस्पर्श परिषह, (१८)
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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