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जैन तथा प्राकृत साहित्य के अभ्यासियों के लिये अपूर्व पुस्तक क्या आपके यहां पुस्तकालय, ग्रन्थभण्डार या शास्त्रभण्डार है ?
. यदि है
तो
फिर .
अवश्य मंगालें श्री अर्धमागधी कोष भाग ४
सम्पादक:-शतावधानी पं० मुनि श्रीरत्नचन्द्रजी महाराज । प्रकाशक:-श्री अखिल भारतवर्षीय श्वे० स्था० जैन कान्फरेन्स ।
मूल्य रु० ३०) : पोस्टेज अलग अर्धमागधी शब्दों का-संस्कृत, गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी चार भाषाओं में स्पष्ट अर्थ बताया है। इतना ही नहीं किन्तु उस शब्द का. शास्त्र में कहां कहां उल्लेख है सो भी बताया है। सुवर्ण में सुगन्धप्रसंगोचित शब्द की पूर्ण विशदता के लिये चारों भाग. सुंदर चित्रों से अलंकृत हैं। पाश्चात्य विद्वानों ने तथा जैन साहित्य के अभ्यासी और पुरातत्व प्रेमियों ने इस महान ग्रन्थ की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है।'
प्रिन्सीपल वुलनर साहब ने सुन्दर प्रस्तावना लिख कर ग्रंथ को और भी उपयोगी बनाया है । यह ग्रन्थ जैन तथा प्राकृत साहित्य के शौखीनों की लायब्रेरी का अत्युत्तम शणगार है।
इस भवं ग्रन्थ को शीघ्र ही खरीद लेना जरूरी है। नहीं तो पठः ताना पड़ेगा। लिखें
___ श्री श्वे स्था० जैन कान्फरेन्स .: . ४१ मेडोझ स्ट्रीट, फोर्ट, वम्बई १