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जीवाजीवविभक्ति
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१२६४) निरन्तर जो गुस्से में भरा रहता है, मौका आने पर जो
शत्रु का सा आचरण करता है-ऐसे २ अन्य दुष्ट
कार्यों में प्रवर्तनेवाला जीव आसुरी भावना का दोषी है। टिप्पणी-निमित्त शब्द का अर्थ निमित्तशास्त्र भी होता है और वह
एक ज्योतिष का अग है। उसको झूठ मूंठ देखकर जो कोई जनता
को ठगता फिरता है वह भी आसुरी घृत्ति का दोषी है। (२६५) (१) शस्त्रग्रहण (शस्त्र आदि से आत्मघात करना),
(२) विष (द्वारा आत्मघात करना), (३) ज्वलन (अग्नि में जल मरना), (४) जलप्रवेश (पानी में डूब मरना ) अथवा (५) अनाचारी उपकरण (कुटिल कार्यों) का सेवन करने से जीवात्मा अनेक भवपरं
पराओ का बंध करता है। 'टिप्पणी-अकालमरण से जीवात्मा मुक्त होने के बदले दुगुना बध
जाता है। (२६६) इस प्रकार भवसंसार में सिद्धि को देनेवाले ऐसे उत्तम
इन छत्तीस अध्ययनों को सुन्दर रीति से प्रकट कर केवलज्ञानी भगवान ज्ञातपुत्र आत्मशान्ति में लीन
हो गये। टिप्पणी-जीव और अजीव इन दोनों के विभागों को जानना जरूरी है
उनको जानने के बाद ही नारकी एवम् तिथंच गति के दुःख और मनुष्य एवं देवगति के सुखदुःखपूर्ण इस विचित्र संसार से छूटने के उपाय को अजमाने की उत्कट भभिलापा प्रकट होती है। ऐसी उत्कट अभिलाषा के वाद आत्मा का समभाव उस उच्चकोटि को पहुँच