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________________ जीवाजीवविभक्ति ४४७ (२२०) सौधर्म स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः एक पल्य की तथा दो सागर को है। ' (२२१) ईशान स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट श्रायु क्रमशः १ पल्य तथा २ सागर से कुछ अधिक की है। (२२२) सनत्कुमार स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट श्राय क्रमशः २ सागर तथा ७ सागर की है। . (२२३) महेन्द्र स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट प्रायु क्रमशः २ सागर से कुछ अधिक तथा ७ सागर से कुछ अधिक (२२४) ब्रह्मलोक स्वर्ग के देवों को जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः ७ सागर की तथा १० सागर की है। (२२५) लांतक स्वर्ग के देवो की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः १० सागर की तथा १४ सागर की है। (२२६) महाशुक्र स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः १४ सागर की तथा १७ सागर की है। (२२७) सहस्रार स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आय क्रमण १७ सागर की तथा १८ सागर की है। शानात स्वर्ग के देवो की जघन्य एवं उत्कृष्ट प्रायु क्रमशः १८ सागर की तथा १९ सागर की है। त स्वर्ग के देवो की जघन्य एवं उत्कृष्ट प्रायु क्रमशः १९ सागर की तया २० सागर की है। या स्वर्ग के देवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु क्रमशः २० सागर की तथा २१ सागर की है। । ..
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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