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उत्तराध्ययन सूत्र
स्थानो में से तीन, नीचे लोक में से वीस और मध्यलोक
में से १०८ जीव सिद्ध हो सकते हैं। (५५) सिद्ध जीव कहां पर रुके हैं ? कहां पर ठहरे हुए हैं। और
कहां से शरीर को छोड़ कर सिद्ध हुए है ? (५६) सिद्ध जीव अलोक की सीमा पर रुक जाते हैं। वे लोक
के अग्र भाग पर विराजमान हैं। मध्यलोक में अपना शरीर छोड़कर वहाँ लोक के अग्रभाग में स्थित सिद्ध
शिला पर वे स्थिर होते हैं। टिप्पणी-शुद्ध चेतन स्वभाव से अर्ध्वगामी है किन्तु अलोकाकाश में
गतिधर्मी धर्मास्तिकाय के न होने से आत्मा अलोकाकाश में नहीं - जा सकती और केवल लोकाकाश की अन्तिम सीमा पर जाकर वह
वहीं स्थित हो (क) जाती है। (५७) (सिद्ध स्थान कैसा है:-) सर्वार्थ सिद्धि नाम के विमान
से १२ योजन ऊपर छत्र के आकार की ईसीपभारा " (ईपत् प्रारभार ) नाम की एक सिद्धशिला पृथ्वी है। (५८) वह सिद्धशिला ४५ लाख योजन लंबी और चौड़ी है।
उसकी परिधि इसके तीन गुने से भी अधिक है। (५९) उस सिद्धशिला का मध्य भाग आठ योजन मोटा है और
बाद में थोड़ा २ घटते हुए अन्त सिरों पर वह मक्खी के
पंखों के समान पतली है। (६०) वह पृथ्वी सब जगह अर्जुन नामक सफेद सोने जैसी
अत्यन्त निर्मल है और उसका समाछत्र जैसा आकार हैऐसा अनंत ज्ञानी तीर्थंकरों ने कहा है।