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________________ ४०५ लेश्या (३९) शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट स्थिति एक अन्तर्मुहूर्तसहित तेतीस सागर की है । (४०) यह लेश्याओं की स्थिति का वर्णन किया । अब चारों गतियों में लेश्याओ की जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति कहता हूँ उसे तुम ध्यानपूर्वक सुनो । (४१) ( नरक गति की लेश्या स्थिति कहते हैं ) नरकों में कापोती लेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्षों की तथा उत्कृष्ट स्थिति एक पल्य के असंख्यातवें भागसहित तीन सागर की है। (४२) नील लेश्या की जघन्य स्थिति एक पल्य के असंख्यातवें भागसहित तीन सागर की है और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्य के असंख्यातवें भागसहित दस सागर की है । (४३) कृष्णलेश्या की जघन्य स्थिति एक पल्य के श्रसंख्यातवें भागसहित दस सागर की है और उत्कृष्ट स्थिति ३३ सागर तक की है । (४४) नरक के जीवों की लेश्या स्थिति इस प्रकार कही; अब पशु, मनुष्य और देवों की लेश्या स्थिति का वर्णन करता उसे ध्यानपूर्वक सुनो। (४५) तिर्यच एवं मनुष्य गतियों में ( पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा समूर्च्छन एवं गर्भज मनुष्यों मे) शुक्ल लेश्या सिवाय बाकी सब लेश्याओं की जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति केवल एक अन्तर्मुहूर्त की है । ( इसलिये इसमें केवलज्ञानी भगवान का समावेश नहीं होता ) ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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