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________________ उत्तराध्ययन सूत्र योग करने में संयमधर्म पूर्वक संभाल रखना - इसे एपणा समिति कहते हैं । (१२) ऊपर की प्रथम गवेषणा ( अर्थात् उद्गमन) तथा उत्पादन (भिक्षा प्राप्त करने) में तथा दूसरी ग्रहणपणा में तथा तीसरी उपयोगैषणा ( उपयोग करने) में लगनेवाले दोषों से संयमी साधु को उपयोगपूर्वक दूर रहना चाहिये । २७२ टिप्पणी- दातार गृहस्थ के उद्गमन सम्बन्धी १६ दोष हैं । उसको इन दोषों से रहित भिक्षाका ही दान करना चाहिये । उत्पादन ( भिक्षा प्राप्त करने ) के १६ दोप साधु के भी हैं और उन दोषों को बचाकर ही साधु को भिक्षा ग्रहण करनी चाहिये । ग्रहणैषणा के १० दोष हैं वे गृहस्थ तथा भिक्षु दोनों को लागू पढ़ते हैं और उन दोपों से बचना इन दोनों का ही कर्तव्य है । इनके सिवाय 8 दोष भिक्षा भोगन ( खाने ) के भी हैं, उन दोपों का परिहार कर साधु भोजन करे । A (१३) औधिक तथा औपग्रहिक इन दोनों प्रकार के उपकरण या पात्र आदि संयमी जीवन के उपयोगी साधनों को उठाते और रखते हुए भिक्षु को इस विधि का बराबर पालन, करना चाहिये । टिप्पणी- भविक वस्तुएँ वे हैं जो उपभोग करने के बाद लौटा दी जाती हैं जैसे उपाश्रय का स्थान, पाट, पाटला, आदि तथा औपग्रहिक वस्तुएँ वे है जो शास्त्रविधि पूर्वक ग्रहण करने के बाद वापिस नहीं की जातीं, जैसे वस्त्र, पान, आदि साधु के उपकरण | · (१४) अच्छी तरह निगाह से पहिले वस्तु को देखे, फिर उसे, झाड़े, उसके बाद ही उसे ले या रणे अथवा उपयोग में ले ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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