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________________ केशिगौतमीय २६३ स्थानरूप, अथवा गतिरूप या आधाररूप द्वीप. जो कुछ भी कहो वह केवल एक धर्म ही है। (६९) हे गौतम ! तुम्हारी बुद्धि सुन्दर है । तुमने मेरा संदेह दूर . कर दिया। अब मै तुम से दूसरा एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ, उसका आप समाधान करो। (७०) एक महाप्रवाहवान् समुद्र में एक नाव चारों तरफ घूमती फिरती है । हे गौतम ! आप उस नाव पर बैठे हो, तो तुम पार कैसे उतरोगे ? (७१) जिस नाव में छेद है वह पार न जाकर बीचही में डूब जाती है और उसमें बैठनेवालों को भी डुबा देती है। विना छेद की नाव ही पार पहुँचाती है। (७२) 'हे गौतम ! वह नाव कौनसी है ?? केशीमुनि के इस प्रश्न को सुनकर गौतम ने इस प्रकार उत्तर दियाः(७३) शरीररूपी नाव है, संसाररूपी समुद्र है और जीवरूपी नाविक ( मल्लाह) है। उस संसाररूपी समुद्र को शरीर से द्वारा महर्षि पुरुष ही तर जाते हैं। टिप्पणी-शरीर यह नाव है इसलिये इसमें कहीं से भी छेद न हो जाय, अथवा यह टूटफूट न जाय-इसकी संभाल लेना तथा संयम। पूर्वक बैठे हुए नाविक (आत्मा) को पार उतारना यह महर्षि पुरुषों का कर्तव्य है। e) (केशीमुनि ने कहाः-) हे गौतम ! तुम्हारी बुद्धि उत्तम है। प्रेम माहेक दूर कर दिया । मुझे एक और शंका है,
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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