SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 300000000000000000000000000000000000000000000000 उंदरि दिठ्ठई उद्धसइ कानि धरि वाघ जिरालइ । उंबरि चढति ढलि पडइ चढिं डूंगरिअ णिआलइ । सात समुद्र लीला तरइ सुक्कीनइ बुड्डवि मरइ । राम कवीसर इम कहइ स्त्रीवीसास मति को करइ ॥ २१॥ दृष्टान्तः मुञ्जमृणालवत्योः। धनवन्ती मत गव्व करि पिक्खवि पण्डरूआई। चऊदहसय छहुत्तरां मुंज गइन्द गयाइं ॥ २२॥ झोली तुट्टवि किं न मुउ किं न हुवउ छारह पुंज । घरि घरि भिक्ख मगाविइ जिम मक्कड तिम मुंज ॥२३॥ अक्षयतृतीयादिने गुलघृतबिन्दुके मण्डके तुण्डेन रण्डया कयाचित् खण्डिते भिक्षां भ्रमन् मुञ्ज आहरे रे ! मण्डक ! मा रोदीर्यदहं खण्डितोऽनया । रामरावणमुञ्जाद्याः स्त्रीभिः के के न खण्डिताः ॥ २४ ॥ रे रे ! यन्त्रक ! मा रोदीः क कं न भ्रमयन्त्यमूः । कटाक्षाक्षेपमात्रेण, कराकृष्टस्य का कथा ? ॥ २५ ॥ ___ इत्यादिश्लोकाः प्रसिद्धाः। अनुकूलसप्पिमाणवि रमणीणं मा करिज्ज वीसासं । जह रामलक्खणेहिं सुप्पणहाए महारन्ने ॥ २६ ॥ प्रायः पुमांसः सरलस्वभावा रण्डास्तु कौटिल्यकलाकरण्डाः । ताताद् ययाचे कथमन्यथाऽस्मिन् कलेवरं केकयनन्दनेयम् ? ॥ २७॥ (८४) JUUUHM0ooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo
SR No.010552
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani
PublisherHarshchandra Bhurabhai Shah
Publication Year
Total Pages313
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy