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________________ तारा पुनः तीसरे अनवस्थित कुंडकी कल्पना करे और उसे सरसोंसे भरे। फिर पहिले कहे अनुसार उसे ग्रहण हअनुसार उसत्रहण अपार भाषा 8 कर उन सरसों से एक एक सरसों आगेके द्वीप और समुद्रोंमें क्षेपण करता चला जाय इसरूपसे उस तीसरे अनवस्था कुंडको भी रीता करदे और उसका रीतापन सूचित करनेके लिये एक अन्य सरसों।६। शलाका कुंडमें डाल दे। इस रीतिसे एक एक अनवस्थित कुंडकी वृद्धिके अनुसार एक एक सरसोंके RAAGAUR-Resese - - HEARRINCIPESARKARISHABREGISRORBA सलवा एकरना, उससमयकारका सरसों का एक अनुप होत एक लक्ष योजन प्रमाण कुण्डके एक योजन गहरे, एक योजन चौडे उतने ही लम्बे, चौकोर यदि खण्ड किये जाय तो वेसात लाख पचास हजार कोटि खण्ड-७५०००००००००००० होते हैं। एक एक योजनके पांचसौ पांच सौ व्यवहार योजन होते हैं। क्योंकि जम्बूद्वीपका प्रमाण बडे योजनसे है । वह बड़ा योजन व्यवहार योजनसे पांचसौ गुणित है। तथा व्यवहार योनन चार कोसका होता है। दो हजार २००० धनुषका एक कोप्त होता है चार हाथका एक धनुष होता है, चौवीस अंगुलका एक हाथ होता है। अठ यव (जौ) का एक अंगुल होता है। तथा आठ चौकोरका सरसों एक यत्र (जौ) होता है। ये समस्त राशियां घनरूप हैं, इन्हें तीन २ 1 जगह माढ कर परस्पर गुणा करना, उससमय जो क्षेत्र चार कोस लम्बा चार कोस चौड़ा तथा चार कोस ऊंचा हो, उसका एक कोस ऊंचा एक कोस लंबा एक कोस चौड़ा खण्ड करना चाहिये, तथा चारके अक्षरको तीन जगह माढ कर परस्पर गुणा करनेसे चौंसठ खण्ड हो जाते हैं । इसप्रकार तीन तीन जगह माडनेसे और परस्पर गुणा करनेसे, नौ चोकोर सरसों की गोल रूपमें सोलह । सरसों हो जाती हैं। इसमकार उस जम्बूद्वीपके बराबर प्रथम अनवस्था कुण्डमें भरी हुई गोल सरसों का प्रमाण यह है १९७९१२०९२६९९६८००००००००००००००००००००००००००००००० इतनी संख्या प्रमाण सरसों तो उस कुण्ड के समभाग पर्यंत होती हैं । तथा उस कुंडके ऊपर जो शिखा है वह शिखा कुण्डकी परिधिके प्रमाणसे ग्यारहवें भाग प्रमाण ऊंची जाती है उस शिखासम्बन्धी सरसोंका प्रमाण यह है १७९९२००५४४५५१६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३४ । अब कुण्डके समभागकी सरसों और शिंखाकी सरसों, दोनोंको मिलाकर समस्त कुंटकी सरसोंका प्रमाण इसप्रकार है १९९७११२९३८४५१३१६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३३३६३६३६३६।। --A ASASSC
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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