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________________ अभाव त्रिकाल संबंधी स्थान मान और ऐश्वर्य आदिका विशेष रूपसे जान लेना लक्षण नामका महानिमिच 5 है। वस्त्र शस्त्र छत्र जूता भोजन 'और शयन आदिकी जगह पर देव मनुष्य राक्षसादिके विभागद्वारा % वा शस्त्र द्वारा और मूसटी आदिकर छिदना देखकर त्रिकालसंबंधी लाभ अलाभ सुख और दुःख , आदिका समझ लेना छिन्न नामका महानिमित्त है । वात पिच और कफ़के दोष रहित पुरुषके ई मुखमें रात्रिके पिछले प्रहरमें चंद्रमा सूर्य पृथिवी पर्वत और समुद्रका प्रविष्ट होना वा समस्त्र पृथिवी८ मंडलका आलिंगन करना आदि शुभ स्वप्न है तथा अपने शरीर पर घृत तैल आदिका लेप, गधा और ऊंट है पर चढना और दक्षिण दिशामें गमन करना आदि अशुभ स्वप्न हैं। इन शुभ अशुभरूप स्वप्नों के द्वारा । आगामी कालमें जीवन मरण सुख दुःख आदिका निश्चय कर लेना स्वप्न नामका महानिमिच है। इन १ आठ प्रकारके महानिमिचोंमें कुशलताका होना अष्टांग महानिमित्तज्ञता नामकी ऋद्धि है। 4 जिसका निरूपण चौदह पूर्वधारीके सिवाय अन्य न कर सके ऐसे किसी सूक्ष्म पदार्थ के विचार हूँ चलने पर बारह अंग और चौदह पूर्वके नहीं भी पाठी मनुष्यका जो प्रकृष्ट श्रुतावरण और वीयांतराय । ९ कर्मके क्षयोपशमसे जायमान असाधारण प्रज्ञा शक्तिके लाभसे उस सूक्ष्म पदार्थका संदेहरहित निरूपण । है कर देना है वह प्रज्ञाश्रवणत्व नामकी ऋद्धि है। परके उपदेशके बिना ही अपनी सामर्थ्य की विशेषतासे ज्ञान और संयमके विधानमें निपुण होना प्रत्येकबुद्धता नामकी ऋद्धि है । यदि इंद्र भी आकर वाद करे तो उसे भी निरुत्तर कर देना और वादीके दोषों को जान लेना वादित्व नामकी ऋद्धि है। क्रियाविषयक ऋद्धिके दो भेद है-एक चारणत्व दूसरी आकाशगामित्व । उनमें चारणत्व ऋद्धिमें जल जंघा तनु पुष्प पत्र आणि और अग्निशिखा आदिके आधार पर गमन होता है इसलिए वह जल ICONSECRECORG SORDIN
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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