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________________ HONEINS 'अध्याप T रुचकवर पर्वतकी दक्षिणदिशामें अमोघ १ सुप्रबुद्ध २ मन्दिर ३ विमल ५ रुचक ५ रुचकोचर ६ चंद्र ७ और सुप्रतिष्ठ - ये आठ कूट हैं । पहिलेजो कूटोंका प्रमाण कह आये हैं वही प्रमाण इन कूटोंका भी समझ लेना चाहिये । इन कूटोंमेंसे अमोघ कूटमें सुस्थिता नामकी दिक्कुमारी रहती है। सुप्रबुद्ध में सुप्रणिधि, मंदिरमें सुप्रबुद्धा, विमलमें यशोधरा, रुचकमें लक्ष्मीमती, रुवकोचरमें कीर्चिमती, चन्द्रमें वसुंधरा और सुप्रतिष्ठमें चित्रा नामकी दिक्कुमारी रहती है। ये आठ दिक्कुमारियां भगवान तीर्थ है करके जन्मकालमें आकर भगवान अईतकी माताके पासमें दर्पण लेकर खडी रहती हैं। रुचकवर द्वीपके पश्चिमदिशामें लोहिताक्ष १ जगत्कुसुम २ पद्म ३ नलिन ४ कुमुद ५ सौमनस ६, यश ७ और भद्र ८ ये आठ कूट हैं। इनका भी कुल प्रमाण पहिले कूटोंके समान समझ लेना चाहिये। इन कूटोंमेंसे पहिले लोहिताक्ष कूटमें इला देवी रहती है । दूसरे जगत्कुसुममें सुरादेवी, तीसरे पद्ममें पृथिवी, चौथे नलिनमें पद्मावती, पांचवें कुमुदमें कानना, छठे सौमनसमें नवमिका, सातवें यशःकूटमें 4 यशस्विनी और आठवें भद्रकूटमें भद्रा नामकी देवी निवास करती है। ये आठ देवियां भगवान तीर्थकरके जन्मकालमें आकर भगवान अहंतकी माताके समीपमें छत्रोंको धारण करती हैं और कानोंको अतिशय प्यारा गायन गाती हैं। रुचकवर पर्वतकी उत्तरदिशामें स्फटिक १ अंक २ अंजन ३ कांचन ४ रजत " कुण्डल ६ रुचिर ७ और सुदर्शन ये आठ कूट हैं । पहिले जो प्रमाण कूटोंका कह'आये हैं वही प्रमाण इन कूटोंका भी है। उनमेंसे स्फटिक कूटमें अलंभूषा नामकी दिक्कुमारी रहती है । अंकमें मिश्रकेशा, अंजनमें पुण्ड. रीकिणी, कांचनमें वारुणी, रजतमें आशा, कुण्डलमें ही, रुचिरमें श्री और सुदर्शन कूटमें धृतिनामकी ATERISTISINSENSTR ...
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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