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________________ ही हैं। इन वापियोंकी गहराई लम्बाई चौडाई आदिका कुल वर्णन पूर्वदिशासंबंधी अंजनगिरिकी वापि अध्याय योंके समान समझ लेना चाहिये तथा इने वापियोंके स्वामी सौधर्म इन्द्रकें लोकपाल हैं। उनमें दक्षिण-| भाषा | दिशासंबंधी अंजनगिरिको.पूर्वदिशामें विजया नामकी वापी है और वह वरुण लोकपालकी है। दक्षिण | | दिशामें वैजयंती वापी है और उसका स्वामी यमलोकपाल है। पश्चिमादिशामें जयंती वापी है वह सोम || लोकपालकी है और उत्तरदिशामें अपराजिता नामकी वापी है और उसका स्वामी वैश्रवण देव है। . पश्चिम दिशासंबंधी अंजनगिरिकी अशोका सुप्रबुद्धा कुमुदा और पुण्डरीकिणी ये चार वापियां 18 ई हैं। इनकी गहराई लम्बाई चौडाई आदिका वर्णन ऊपरकी वापियोंके ही समान है। उनमें पूर्वदिशामें | अशोका नामकी वापी है और वह वेणुदेवकी है। दक्षिणदिशामें सुप्रबुद्धा (सुप्रसिद्धा) है और उसका | II स्वामी वेणताल देव है। पश्मिदिशामें कुमुदा नामकी वापी है और वह वरुणकी है और उत्तरदिशामें है। पुण्डरीकिणी नामकी वापी है और उसका स्वामी भूतानन्द है। उत्तरदिशाके अंजनगिरिकी प्रभंकरा सुमना आनंदा और सुदर्शना ये चार वापियां हैं। पहिले जो वापियों के प्रमाणका वर्णन कर आये हैं वह प्रमाण इन वापियोंका भी समझ लेना चाहिये एवं..ये 18 वापियां ऐशान इन्द्र के लोकपालोंकी है। उनमें पूर्वदिशामें प्रभंकरा नामकी वापी है और वह वरुण लोक-15 पालकी है । दक्षिणदिशामें सुमना नामकी वापी है और उसका स्वामी यमलोकपाल है। पश्चिमदिशामें आनन्दा नाम वापी है और वह सोमलोकपालकी है और उत्तरदिशामें सुदर्शना नामकी वापी है और | उसका स्वामी वैश्रवण लोकपाल है। - उपर्युक्त सोलहो वापियोंका अभ्यंतर फासला पैंसठ हजार पांचसौ पैंतालीस योजनका है। मध्यका ११९ AARASHTRANSAR VODAFORIESCENERABPOPURERABA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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