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________________ F अध्याय नवेसो योजनोंके जानेपर एकसौ योजन गहरा है। पिचानवे हजार योजनोंके जानेपर एक हजार योजन गहरा है। . जैसी वेला लवणोदधि समुद्रके भीतर है वैसी ही वाहिर है। विजय वैजयंत जयंत और अपराजित ये चार द्वार हैं। लवणोदधि समुद्रहीकी वेला होती है अन्य किसी समुद्रकी नहीं। लवण समुद्र में । ही पाताल विवर हैं अन्य समुद्रोंमें नहीं। लवण समुद्रको आदि लेकर स्वयंभूरमण समुद्र पर्यंत समस्त समुद्र एक हजार योजन गहरे हैं। द्वीप और समुद्रोंके अंत अंत भागोंमें दो दो वेदिका हैं। जो वेदिका द्वीपोंके अत्तोंमें हैं वे द्वीपोंकी कही जाती हैं और जो समुद्रोंके अंतमें हैं वे समुद्रोंकी कहीं जाती हैं। * लवण समुद्रका जल ऊपरको उठा हुआ है और शेष समुद्रोंका जल पसरा हुआ है। चार समुद्रोंका जल भिन्न २ रूप है, तीन समुद्रोंका जल जलस्वादरूप है वाकीके असंख्यात समुद्रोंका जल इक्षुरसके स्वाद141 रूप है। लवण समुद्रके जलका रस नुनखरा है। वारुणी समुद्रके जलका रस वारुणी (मद्य)के रसका र है। क्षीरोदधि समुद्रका जल दूधके रसका है एवं धृतोदधिका जल पीके रसके समान है। कालोदधि IM] पुष्करोदधि और स्वयंभूरमण समुद्रका जल जलके रसका है इनके सिवाय शेष समस्त समुद्रोंका रस १ ईखके रसके समान है इसप्रकार चार समुद्रोंके भिन्न २३ । तीन के जलके रसके समान हैं एवं शेष समुद्रोंके रस ईखके रसके समान हैं। , B. लवणोदधि कालोदधि और स्वयंभूरमण समुद्र में मत्स्य कछुए आदि जलचर जीवोंका निवास स्थान है । इनके सिवा अन्य किसी भी समुद्रमें कोई भी जलचर जीव नहीं रहता । लवण समुद्रमें 81 जहां पर नदी आकर मिली है उस नदीमुखमें नौ योजनके शरीरके धारक मत्स्य हैं एवं भीतर समुद्रमें ARM500-91- 9DISASRUSHORS KAR-Pow ९२५
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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